सम्यग् दर्शन, ज्ञान और चारित्र प्राप्त करने का प्रयास करें : आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

सम्यग् दर्शन, ज्ञान और चारित्र प्राप्त करने का प्रयास करें : आचार्यश्री महाश्रमण

भीलवाड़ा, 7 नवंबर, 2021
तेरापंथ के एकादशम अधिशास्ता आचार्यश्री महाश्रमण जी ने अमृत देशना प्रदान करते हुए फरमाया कि सूयगड़ो आगम में बताया गया हैभगवान ॠषभ ने अपने संसारपक्षीय पुत्रों से कहा कि संबोधि को प्राप्त करो। संबोधि को क्यों प्राप्त नहीं होते? जो वर्तमान में संबोधि को प्राप्त नहीं होता, उसे अगले जन्म में भी वह सुलभ नहीं होता। संबोधि बहुत अच्छी उपलब्धि होती है। सम्यग् ज्ञान, दर्शन और चारित्र इस रत्नत्रयी की प्राप्ति के रूप में संबोधि मिल जाए, कितनी बड़ी संपदा प्राप्त हो सकती है। आदमी भौतिक संपदा पाने का प्रयास करता है। भगवान ॠषभ ने अपने पुत्रों को मानो एक दिशा में दिखा दी कि भौतिक साम्राज्य में क्या? ऐसा साम्राज्य प्राप्त करो जो मिलने के बाद वापस जाए ही नहीं। हम सभी भगवान ॠषभ की परंपरा में हैं, उनके पुत्र हैं। यह उनका संदेश केवल उन 98 पुत्रों के लिए हम सबके लिए संबोध है। किसी के निमित्त से बात कही जाती है, पर कितनों के लिए काम की हो सकती है। जैसे उत्तराध्ययन आगम के दसवें अध्ययन में भगवान का गौतम के नाम संदेश हैसमयं गोयम मा पमायए। इस एक बात को विभिन्‍न कोणों से विख्यात किया गया है। हम भी उनकी संतान-शिष्य हैं, तो ये संदेश हमारे लिए भी है। वैसे ही दशवैआलियं आगम है, जो एक मनक के लिए बनाया होगा और आज कितने मनक उसे काम में ले रहे हैं। परमपूज्य आचार्य महाप्रज्ञ जी ने तो संबोधि ग्रंथ की रचना कर दी। मुनि मेघ को भी भगवान महावीर से संबोधि मिला था। आदमी का दर्शन, श्रद्धा सम्यग् हो जाए। फिर ज्ञान सम्यग् हो जाए और फिर चारित्र भी प्राप्त हो जाए। ये तीन बोधि हो जाती हैं।  दूसरी बात यह बताई गई है कि वर्तमान में जो संबोधि को प्राप्त नहीं होता उसे अगले जन्म में भी सुलभ नहीं होती। कारण अगले जन्म में नरक में चले गए या देवगति में चले गए तो वहाँ आशा कम है। तिर्यंच गति में भी कठिनाई है। अनार्य क्षेत्र में भी संबोधि मिलने में कठिनाई है। शास्त्रकार ने भी यह नहीं कहा कि नहीं मिलेगी, कहा है, संबोधि मिलना दुर्लभ है। वर्तमान में तो माहौल अच्छा है, तो तुम संबोधि की दिशा में आगे बढ़ो। यहाँ संबोधि अच्छी मिल गई तो और आगे के जन्मों में संबोधि प्राप्त हो सकेगी, विकास हो सकेगा। तीसरी बात बताई है कि रात्रियाँ जो बीत जाती हैं, लौटकर नहीं आती हैं। बीत गया वो वापस आता नहीं। जो समय है, उसका बढ़िया उपयोग कर लें। फिर वो हमारी रात्रियाँ सफल, सुफल हो जाएगी। चौथी बात बताई है कि जीवन-सूत्र के टूट जाने पर उसे पुन: साधना सुलभ नहीं है। आयुष्य टूट तो सकता है, पर बढ़ाया नहीं जा सकता यह मान्यता है। जब तक जीवन काल है, उसका बढ़िया उपयोग करते रहो। मनुष्य जीवन है, बड़ा महत्त्वपूर्ण जीवन है, अगर हम इसका अनुपम प्रयोग कर सकें। बढ़िया उपयोग हमारे इस जीवन की सुफलता हो सकती है। मानव जीवन में आसक्‍ति-भोग में रह गए तो फिर साधारण जीवन बीत जाता है। यह एक प्रसंग से समझाया कि एक सूई भी यहाँ से साथ में जाने वाली नहीं है। साथ में कोई संपत्ति जाने वाली नहीं है। संतों के कभी कपड़ों में जेब नहीं होती। इससे प्रेरणा लें कि साथ में कुछ नहीं जाने वाला। कर्मों में मान लें जेब होती है, उसमें पुण्य-पाप है।, वो साथ में चले जाते हैं। छापर व्यवस्था समिति के लोग पूज्यप्रवर की सन्‍निधि में पहुँचे। छापर-चतुर्मास 2022 के लोगो का अनावरण पूज्यप्रवर के श्रीचरणों में हुआ। पूज्यप्रवर ने फरमाया कि हमारा अगला 2022 का चतुर्मास परमपूज्य कालूगणी की जन्म-स्थली छापर के लिए निर्धारित है। पूज्य कालूगणी के शिष्य हमारे गुरु रहे हुए हैं। लोगो में पूज्य कालूगणी का भी फोटो है। हरिण और हरा-भरा वृक्ष भी है। हमारा छापर का चतुर्मास भी हरा-भरा रहे।
अखिल भारतीय कांग्रेस कमिटि के राष्ट्रीय महासचिव धीरज गुर्जर जो भीलवाड़ा से ही हैं, पूज्यप्रवर के दर्शन किए और भी कार्यकर्ता भी आए हैं। प्रकाश सुतरिया-अध्यक्ष भीलवाड़ा समिति ने आगंतुक मेहमानों का स्वागत किया। धीरज गुर्जर ने अपनी भावना अभिव्यक्‍त की। पूज्यप्रवर ने प्रेरणा स्वरूप आशीर्वचन फरमाया। साध्वीप्रमुखाश्री कनकप्रभा जी ने कहा कि मनुष्य अनेक चित्त वाला होता है। आचारंग सूत्र में बताया गया है कि इस कारण आदमियों को अलग-अलग वर्गों में बाँटा गया है, उनके पाँच प्रकार हैं। जहाँ जीवन है, वहाँ अनेक प्रकार की समस्याएँ होती हैं। संतों के सत्संग में उन समस्याओं का समाधान मिल सकता है। परिस्कार की चेतना जाग जाए तो व्यक्‍ति अच्छा और प्रशस्त जीवन जी सकता है। मुख्य नियोजिका जी ने कहा कि आश्रव को कुछ लोग अजीव मानते हैं, पर वास्तव में आश्रव जीव ही है। शास्त्रों के अध्ययन से व्यक्‍ति के मन में तप की भावना भी जागृत हो सकती है। तपस्या हमारी आत्मशुद्धि में हेतुभूत बनती है। छापर चतुर्मास व्यवस्था समिति के अध्यक्ष माणकचंद नाहटा ने अपनी भावना अभिव्यक्‍त की। भिक्षु भजन मंडल-छापर ने सुमधुर गीत का संगान किया। कार्यक्रम का संचालन करते हुए मुनि दिनेश कुमार जी ने बताया कि हम अध्यात्म की दिशा में आगे बढ़ते जाएँ।