लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए गति भी उसके अनुरूप हो : आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए गति भी उसके अनुरूप हो : आचार्यश्री महाश्रमण

सारंगी, 16 जून, 2021
अनुकंपा के सागर आचार्यश्री महाश्रमण जी आज प्रात: विहार कर सारंगी पधारे। प्रेरणा पाथेय प्रदान करते हुए दयामूर्ति ने फरमाया कि आदमी जीवन जीता है। जीवन एक सामान्य रूप में जीया जाता है, जिसे हर प्राणी जीता है। सामान्य रूप में जीवन का व्यतीत होना सामान्य बात हो जाती है।
एक उद्देश्यपूर्ण जीवन होता है। जिसमें कोई लक्ष्य जीवन में प्राप्त करने की दिशा में आगे बढ़ना है। वह जीवन एक विशिष्ट जीवन हो सकता है। महान जीवन हो सकता है।
दसवेंआलियं की चूलिका में कहा गया हैदो शब्द हैंअनुोत, दूसरा हैप्रतिोत। प्रवाह के साथ-साथ बहना अनुोतगामिता हो जाती है। प्रवाह के विरुद्ध चलना प्रतिोतगामिता हो जाती है। सामान्यतया आदमी भोग इंद्रियविषय सेवन के लिए, शरीर के लिए जीवन जीता है। इस प्रकार से जीवन जी लेना अनुोत का जीवन हो गया।
एक आदमी त्याग-संयम की दिशा में आगे बढ़ता है, यह आम मार्ग से अलग पथ है। त्याग मोक्ष का मार्ग है। मोक्ष की दिशा में आगे बढ़ना प्रतिोतगामित्व होता है। राग का जीवन जीना सामान्य बात, त्याग का जीवन जीना विशेष बात है। आत्मरंजन, आत्मानुरक्‍त होना, योग का जीवन विशेष बात होती है। राग-भोग दु:ख का कारण व त्याग सुख का कारण है।
हम जीवन जीते हैं। गृहस्थ जीवन में साधना भी की जा सकती है। एक गृहस्थ कैसे प्रतिोत की दिशा में आगे बढ़ सकता है। गार्हस्थ्य में भी त्याग और योग कैसे आचरण में आए। अवस्था-अवस्था में जीवन शैली का कुछ अंतर हो सकता है। ढ़लती उम्र में साधना में अधिक समय लगाना चाहिए। शनिवार की सामायिक करें।
सामायिक है, वह भी त्याग की दिशा में प्रस्थान-प्रयास होता है। व्यक्‍तिगत जीवन में संयम हो। नशामुक्‍ति हो, खान-पान में संयम हो। जितना संयम मिले, धार्मिक साधना करना, पानी का भी संयम हो। वाणी का संयम हो। अनावश्यक न बोलें। भाषा में कटुता न हो। वाणी में पटुता-चातुर्य हो। झूठ से बचें तो पाप से बचा जा सकता है।
गृहस्थ को भी अधिकार है, धर्म करने का। रात्रि भोजन से बचने का प्रयास हो। चौविहार की साधना करें। अहिंसा-संयम आत्म कल्याण के तत्त्व हैं। जमीकंद भक्षण से बचें। जीवन जीने का लक्ष्य हो जाए, मैं मोक्ष की दिशा में आगे बढ़ूँ। गति भले मंद हो, पर बंद न हो। तो व्यक्‍ति कहीं पहुँच सकता है। चलने वाली चींटी सैकड़ों योजन जा सकती है। तेज उड़ने वाला गरुड़ एक जगह बैठा रहेगा तो आगे नहीं बढ़ पाएगा।
आचार्य तुलसी, आचार्य महाप्रज्ञ बालावस्था में संत हो गए। एक लक्ष्य बना और कितना विकास किया। आगे पहुँच गए। ज्ञानार्जन कर दूसरों को भी ज्ञान का दान दिया। आचार्य भिक्षु भी अपने जीवन में अपने ढंग से आगे बढ़ते गए। जीवन में लक्ष्य हो जाए, मुझे इस दिशा में आगे बढ़ना है। लक्ष्य भी बढ़िया, पवित्र और निर्वद्य हो। परम की तरफ बढ़ाने वाला हो।
लक्ष्य अनुरूप गति हो तो फिर आदमी लक्ष्य को प्राप्त हो सकता है या निकट कर सकता है। प्रयास करें हम आदर्श की तरफ आगे बढ़ें। अध्यात्म में मोक्ष हमारा परम लक्ष्य-आदर्श है। सम्यक् ज्ञान-दर्शन चारित्र की साधना करना उसका साधन है। इनकी साधना करने से हम आगे बढ़ सकते हैं। साधन साध्य बनते ही आत्मा मोक्ष में परिणित हो जाती है।
सारांश में जीवन में लक्ष्य अच्छा होना चाहिए। उसके अनुरूप प्रयास-गति होनी चाहिए। अनुोत से हटकर प्रतिोत की दिशा में आगे बढ़ने का प्रयास हो तो हमारे जीवन की अच्छी सार्थकता हो सकती है।
आज हम सारंगी आए हैं। सारंगी सुरंगी बनी रहे। अच्छा रंग बना रहे। धर्म की द‍ृष्टि से सारंगी का सुरंगीपणा बना रहे। लोगों में धर्म की भावना रहे, मंगलकामना।
पूज्यप्रवर के स्वागत, अभिवंदना में सारंगी तेरापंथी सभा अध्यक्ष, तेयुप के अध्यक्ष, महिला मंडल अध्यक्ष, ज्ञानशाला ज्ञानार्थी, सविता बम्बोली, महिला मंडल, महिला मंडल मंत्री, महिला मंडल की बहुओं ने, कन्या मंडल, तेयुप, मूर्तिपूजक महिला मंडल, संदीप तलेसरा (मूर्तिपूजक संघ), अजित बम्बोली ने अपने गीत-भावों से अभिव्यक्‍ति दी।
कार्यक्रम का संचालन मुनि मनन कुमार जी ने किया।