एकाह्निक तुलसी-शतकम्

एकाह्निक तुलसी-शतकम्

(38) शैक्षस्थविरवृद्धेषु, बालग्लानादिकेषु च।
यथायोग्यप्रकारेण, शासने करणे क्षम:॥
शैक्ष हो या स्थविर, वृद्ध हो, बाल हो या ग्लान, आप सभी पर यथायोग्य उपचार से शासना करने में सक्षम थे।

(39) ‘लालने बहवो दोषास्ताडने बहवो गुणा:’।
प्राचीनैषा श्रुतिर्देव!, जनन्या विफलीकृता॥
एक प्राचीन श्रुति है कि लाड़ में बहुत दोष है और ताड़ने में बहुत गुण, परंतु गुरुदेव आपश्री की माता साध्वी वदनां जी ने इस श्रुति को विफल कर दिया।

(40) गृह्णन्-गृह्णन् गुणान् कालुसुगुरुभातृमातृभि:।
अत्यल्पसमये स्वामिन्‍नभवस्त्वं गुणाकर:॥
पूज्य कालुगणी, माता वदनांजी एवं भाईजी महाराज चम्पालाल जी स्वामी से गुण ग्रहण करते-करते आप अल्प समय में ही गुणाकर अर्थात् गुणों की खान बन गए।

(41) भवत: सद्कृपाद‍ृष्ट्या चास्ति शतमुखोन्‍नति:।
अकृपापूर्णद‍ृष्ट्या च, सदा भवत्यवक्षय:॥
आपकी कृपापूर्ण द‍ृष्टि से व्यक्‍ति सौ प्रकार से विकास करता है एवं अकृपापूर्ण द‍ृष्टि से सदा नाश को प्राप्त होता है।

(42) कदापि न्यायमध्ये नानयत् प्रियाप्रियं भवान्।
न्यायप्रिय! भुवि स्वामिन्‍नेतन्न्यायोऽतिदुर्लभ:॥
आपने कभी भी न्याय करने के विषय में प्रियता और अप्रियता को मध्य में नहीं आने दिया। हे न्यायप्रिय! इस धरती पर ऐसा न्याय दुर्लभ है।

आपके चमत्कार
(43) नो जानामि त्वदीयेषु, शब्देषु का चमत्कृति:।
श्रोतारो विस्मरन्ति स्म, कालबोधं सदैव हि॥
मैं नहीं जानता आपके शब्दों में क्यों चमत्कार था, जो श्रोताओं को समय का बोध ही नहीं रहता।

(44) त्वदीये नहि जानामि, सुनाम्नि का चमत्कृति:।
सैनिकेन श्रुतं नाम, पांचाले चामुचद्यतिम्॥
प्रभो! मैं नहीं जानता आपके नाम में क्या चमत्कार है। जब पंजाब में मुनि मांगीलाल जी (मुकुल) को जासूस समझकर पुलिस ने पकड़ लिया, बंदूकें तान लीं, तब जैसे ही उन्होंने यह बताया कि वे आचार्य तुलसी के शिष्य हैं, उन्होंने तुरंत क्षमा माँगते हुए मुनिश्री को छोड़ दिया। (प्रेरणा : पल दो पल की, भाग-1, पृष्ठ 22)

(45) नो जानामि त्वदीयेषु, मन्त्रेषु का चमत्कृति:।
तुलसीनामजापेन, समाप्ता कर्णवेदना॥
मैं नहीं जानता तुलसी नाम के मंत्रों में क्या चमत्कार है। जब साध्वी चांदकुमारी जी (लाडनूं) के अचानक कान में छेद हो गया, मवाद निकलने लगी और डॉक्टर ने ऑपरेशन ही एकमात्र समाधान बताया, तब साध्वीश्री ने मात्र ‘जय तुलसी’ के जप से स्वयं को स्वस्थ बना लिया। डॉक्टर को भी आश्‍चर्य हुआ कि इनके कान छेद कैसे ठीक हो गया। (प्रेरणा : पल दो पल की, भाग-1, पृष्ठ 82)

(46) त्वदीये नहि जानामि, मुहूर्त्ते का चमत्कृति:।
यशोफूलसुसाध्वीभ्यां, मुहूर्त्तं सिद्धिकारकम्॥
गुरुदेव! मैं नहीं जानता आपके द्वारा दिए गए मुहूर्तों में क्या चमत्कार है। साध्वी फूलकुमारी जी एवं साध्वी यशोधरा जी
ने आपसे मुहूर्त प्राप्त कर प्रथम बार बिहार एवं बंगाल जैसे
सुदूर प्रांतों की सफल यात्रा की। 
(शेष अगले अंक में)