अध्यात्म योग की दिशा में सभी को आगे बढ़ना चाहिए : आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

अध्यात्म योग की दिशा में सभी को आगे बढ़ना चाहिए : आचार्यश्री महाश्रमण

रतलाम बाहर-दिलीपनगर, 21 जून, 2021
21 जून, अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस। जैन धर्म में योग का बड़ा महत्त्व है। उस योग और इस योग में फर्क है। योग पुरुष आचार्यश्री महाश्रमण जी ने योग दिवस पर प्रेरणा पाथेय प्रदान करते हुए फरमाया कि योग आज का एक प्रचलित शब्द है। 21 जून का दिन तो योग के साथ मानो जुड़ गया है।
21 जून योग के द्वारा योग दिवस के रूप में अपनी पहचान बना चुका है। योग शब्द का जैन दर्शन में एक पारिभाषिक या विशेष अर्थ हैशरीर, वाणी और मन की प्रवृत्ति या व्यापार योग होता है। इस योग और उस योग शब्द में अंतर प्रचलित हो रहा है। यह एक प्रवृत्यात्मक योग है और योग निवृत्ति से भी जुड़ा हुआ है।
आज जिस योग के बारे में चर्चा हो रही है, वह योग शब्द एक साधना से जुड़ा हुआ है, योग साधना। कलिकाल सर्वज्ञ आचार्य हेमचंद्र के ग्रंथ अभिधान चिंतामणी नाम माला में योग की परिभाषा दी गई है‘मोक्षो पायो योगो---’ मोक्ष का उपाय-साधन योग है। जिसके द्वारा आत्मा को मुक्‍ति प्राप्त हो वह साधन योग है। वह उपाय हैसम्यक् ज्ञान, सम्यक् दर्शन और सम्यक् चारित्र। यह रत्नत्रयी योग है, मोक्ष का उपाय है।
योग के अनेक आयाम हैं। आसन-प्राणायाम यह भी एक योग-साधना का अंग है। ध्यान भी योग का अंग है। प्रेक्षाध्यान भी योग साधना का अंग है। अणुव्रत के अंतर्गत अहिंसा-सत्य-अचौर्य-ब्रह्मचर्य-अपरिग्रह योग साधना का अंग है। जीवन में संस्कार, नियम अच्छा आचार नहीं है, वह तो एक अभाव की बात हो सकती है।
अध्यात्म के जगत में निवृत्ति की साधना भी एक योग साधना है। प्रेक्षाध्यान में अनेक प्रयोग है। हम बाहर से भीतर की ओर आएँ। हम इंद्रियों का संयम कर लें और कुछ भीतर में जाने का प्रयास करें। ये बहुत ऊँची योग साधना हो जाती है। सर्वेन्द्रिय संयम एक प्रयोग है।
संसार में जीना है तो बाहर जीना भी होता है। पर रहें भीतर में। प्रेक्षाध्यान के प्रयोग से समीप्त योग का प्रयोग करवाया। हम राग-द्वेष मुक्‍ति की दिशा में बढ़ने का प्रयास करें। प्रेक्षा यानी गहराई से देखना। देखने में प्रियता-अप्रियता का भाव नहीं। अध्यात्म योग की दिशा में हम सभी आगे बढ़ें। यह काम्य है।
आज हम आचार्यश्री नानेश के नाम से जुड़े हुए इस स्थान में आए हैं। यहाँ भी रहने वाले विद्यार्थी आदि जो भी हैं, उनमें अच्छे संस्कार पुष्ट होते रहें, मंगलकामना।
पूज्यप्रवर की अभिवंदना में सोनम बम्बोली, आचार्य नानेश छात्रावास के सह-संयोजक जेठोजी, रतलाम के अध्यक्ष अशोक दक ने अपने भावों की अभिव्यक्‍ति दी। कार्यक्रम का संचालन मुनि मनन कुमार जी ने किया।