साधुत्व के तेरह नियम तेरह करोड़ से अधिक मूल्यवान हैं : आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

साधुत्व के तेरह नियम तेरह करोड़ से अधिक मूल्यवान हैं : आचार्यश्री महाश्रमण

भीलवाड़ा, 3 नवंबर, 2021
मर्यादा-पालन में सतत् जागरूक आचार्यश्री महाश्रमण जी ने अमृत देशना प्रदान कराते हुए फरमाया कि सप्ताह पूर्व मैंने एक बहन को सामायिक चारित्र ग्रहण करवाया था। आज उस साध्वी की बड़ी दीक्षा-छेदोपस्थापनीय चारित्र स्वीकरण
की प्रक्रिया संपन्‍न करने का उपक्रम उपस्थित है। पूज्यप्रवर ने नवदीक्षित साध्वी रोहिणीप्रभा जी को पाँच महाव्रतों और रात्रि भोजन विरमण व्रत का विस्तार से समझाकर छेदोपस्थापनीय चारित्र स्वीकार करवाया। मुख्य प्रवचन में पूज्यप्रवर ने फरमाया कि सूयगड़ो आगम में शास्त्रकार ने साधु के लिए निर्देश दिया है कि तीन स्थानों में साधु संयत रहे। वे हैंईर्या समिति, आसन-शयन और भक्‍त पान। साधु चलने में जागरूक रहे, अहिंसा का ध्यान रहे। चलते-चलते साधु बात न करे। बात करने से रास्ता आसानी से कट सकता है, पर कर्म आसानी से नहीं कटेंगे। कर्म काटने के लिए चलने में हमें ध्यान देना होगा। साधु शरीर-प्रमाण भूमि देखकर चले कि रास्ते में किसी प्रकार की हिंसा न हो जाए। साधु संयत रहे। चलना भी हमारी साधना है। आसन-शयन संयत आदान निक्षेप समिति का ही अंग है। आसन-शयन के प्रतिलेखन आदि के प्रति भी साधु जागरूक रहे। अनावश्यक संग्रह साधु न करें। भक्‍तपान यानी ऐषणा समिति में सावधान। साधु ऐषणा समिति में जागरूक रहे। गवेषणा ठीक कर लें, संकेत करने से साधु बचने का प्रयास करें। सहज जो सुलभ हो, अपेक्षानुसार लें। गवेषणा में भी जागरूक रहे। विधि जो है, उसमें जागरूक रहे। साधु मान, क्रोध, माया और लोभ से भी दूर रहे। इनका विवेक करे। योग रूप में कषाय प्रवर्जनीय है। साधु में भद्रता रहे, छल कपट न रहे। कुल सात बातें इस सूत्र में समझायी गई है। शिक्षाएँ दी गई हैं। नव दीक्षितों में ज्ञान का, सेवा भावना का विकास होता रहे। साधु के लिए स्वाध्याय एक खुराक है। हम हर चर्या में जागरूक रहें। यह हमारे लिए कर्तव्य है। आज चतुर्दशी है, आज हाजरी का क्रम है। पूज्यप्रवर ने हाजरी का वाचन करते हुए मर्यादावली का वाचन किया। हमारे तेरह नियम तेरह करोड़ की संपत्ति है। हमारी संघीय मान्यता सबके लिए एक समान है। साधु-साध्वियों को प्रेरक प्रेरणाएँ प्रदान करवाई। नवदीक्षित साध्वी रोहिणीप्रभा जी ने लेख-पत्र का वाचन किया। पूज्यप्रवर ने कल्याणकों की बख्शीश करवाई। मुनि धर्मरुचि जी स्वामी ने नव दीक्षित साध्वीजी को मंगलकामना प्रेषित करावाई। नवदीक्षित साध्वी जी ने साधुओं को वंदना की। चारित्रात्माओं ने सामुहिक लेख-पत्र का वाचन किया।
पूज्यप्रवर ने तपस्या के प्रत्याख्यान करवाए। मुख्य नियोजिका जी ने कहा कि आज धनतेरस है। आज से दीपावली पर्व की शुरुआत हो जाती है। हर व्यक्‍ति समृद्ध बनना चाहता है। धन तेरस के महत्त्व को समझाया। आज के ही दिन भरत चक्रवर्ती को तीन-तीन बधाइयाँ प्राप्त हुई थीं। हमारे लिए यह आध्यात्मिक और प्रकाश का पर्व है। साध्वीवर्या जी ने कहा कि इस संसार में कहीं वियोग का तो कहीं संयोग का दु:ख है। दु:ख के कई कारण हो सकते हैं। दु:ख का सबसे बड़ा हेतु हैइच्छाएँ, कामनाएँ। इच्छाएँ सुख का कारण भी हो सकती हैं। भौतिक सुख पाने की इच्छा दु:ख का कारण है। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।