अवबोध

स्वाध्याय

अवबोध

मंत्री मुनि सुमेरमल ‘लाडनूं’

(3) चारित्र मार्ग

प्रश्‍न-1 : चारित्र किसे कहते हैं?
उत्तर : आत्मा की अशुद्ध प्रवृत्तियों के निरोध को चारित्र कहते हैं।

प्रश्‍न-2 : चारित्र किसे कहते हैं?
उत्तर : आत्मा प्राप्ति के बिना कोई भी जीव शैलेशी अवस्था को प्राप्त नहीं होता, पूर्ण संवरयुक्‍त नहीं होता। शैलेशी अवस्थाप्राप्त व पूर्ण संवरयुक्‍त जीव ही कर्ममुक्‍त हो सकता है।

प्रश्‍न-3 : चारित्र की प्राप्ति कैसे होती है?
उत्तर : चारित्र मोहनीय की बारहअनंतानुबंधी, अप्रत्याख्यानी व प्रत्याख्यानी क्रोध, मान, माया, लोभ तथा दर्शन मोहनीय की तीन प्रकृत्तियों के क्षयोपशम से चारित्र की प्राप्ति होती है। इनमें किसी-किसी के अनंतानुबंधी कषाय चतुष्क तथा दर्शन मोहनीय की तीन प्रकृतियों का क्षय भी हो सकता है।

प्रश्‍न-4 : चारित्र के कितने प्रकार हैं?
उत्तर : चारित्र के पाँच प्रकार हैं
(1) सामायिक (2) छेदोपस्थापनीय (3) परिहार विशुद्धि
(4) सूक्ष्म संपराय (5) यथाख्यात
(क्रमश:)