श्रमण सिद्धप्रज्ञ की बड़ी दीक्षा का आयोजन

श्रमण सिद्धप्रज्ञ की बड़ी दीक्षा का आयोजन

रतलाम
परम पावन आचार्यश्री महाश्रमण जी ने नवदीक्षित साध्वी अवन्तिकप्रभा जी को छेदोपस्थापनीय चारित्र (बड़ी दीक्षा) ग्रहण करवाई तो मुनि दिनेश कुमार जी स्वामी ने रतलाम में नव दीक्षित मुनि सिद्धप्रज्ञ जी को छेदोपस्थापनीय चारित्र पूज्यप्रवर के निर्देशानुसार ग्रहण करवाया।
मुनि दिनेश कुमार जी ने मंगल स्मरण करते हुए प्रथम बार बड़ी दीक्षा प्रदान कराते हुए सर्वप्रथम गुरुदेव को वंदना की। दीक्षा का अर्थ होता हैव्रतों का संग्रह। मैं गुरुदेव के प्रति कृतज्ञ हूँ कि उन्होंने मुझे बड़ी दीक्षा देने का निर्देश दिया। चौबीस तीर्थंकरों के शासनकाल में से प्रथम तीर्थंकर और अंतिम तीर्थंकर के शासनकाल में ही बड़ी दीक्षा होती है।
आज श्रमण सिद्धप्रज्ञ की सप्रतिक्रमण दीक्षा होने जा रही है। सामायिक चारित्र एक बार आता है। छेदोपस्थापनीय चारित्र एक बार आता है जो व्यक्‍ति निष्ठावान है, वह एकबार छेदोपस्थापनीय चारित्र स्वीकार कर जिंदगी-भर अक्षुण रूप में निभाता है। मैं श्रमण सिद्धप्रज्ञ से कहना चाहता हूँ कि तुम्हारा छेदोपस्थानीय चारित्र अक्षुण रहे। गुरु इंगित की आराधना करते रहें। गुरुद‍ृष्टि में सुख सृष्टि होती है।
मैं पाँचों पदों को वंदना करता हुआ परम पूज्य का स्मरण करते हुए उनकी आज्ञा से, उनका निमित्त बनते हुए बड़ी दीक्षा ग्रहण करा रहा हूँ। मुनिश्री ने पाँच महाव्रतों एवं रात्रि भोजन विरमण जो साधु का छठा व्रत है, वो खोलकर विस्तार से समझाकर यावज्जीवन के लिए तीन करण-तीन योग से त्याग करवाए। अतीत में हुए दोष से निवृत्त करवाया। उसमें निंदा और गृहा करने का निर्देश दिया। इस तरह मुनि सिद्धप्रज्ञ जी को छेदोपस्थापनीय चारित्र में स्थापित किया। मुनि सिद्धप्रज्ञ जी ने पाँच महाव्रत और छठा व्रत रात्रि भोजन विरमण को स्वीकार कर प्रत्याख्यान किए।
इस प्रसंग पर मुनि योगेश कुमार जी ने कहा कि तेरापंथ में सर्व साधु-साध्वियाँ गुरु की आज्ञा में रहते हैं। गुरु की आज्ञा के बिना पत्ता हिलता नहीं है, और हिल जाए तो वो टिकता नहीं है। मुनि सत्यकुमार जी के निवेदन पर रतलाम आए हैं। मुनि दिनेश कुमार जी धर्मसंघ के दीपते संत हैं। मैं मुनि सिद्धप्रज्ञ के लिए तीन बातें ध्यान में रखने योग्य बता रहा हूँशुद्धि, सिद्धि और उपलब्धि परक। ये आराधक पद को प्राप्त करें, सिद्ध, बुद्ध बनें। साधु जीवन को प्राप्त करना अतुलतम उपलब्धि है।
मुनि हेमराज जी, मुनि शुभकरण जी एवं मुनि विवेक कुमार जी ने श्रमण सिद्धप्रज्ञ को अपनी मंगल शुभकामनाएँ प्रदान की। मुनि सिद्धप्रज्ञ जी ने अपने सात दिन के मुनि जीवन के संस्मरण सुनाते हुए कहा कि मुनि दिनेश कुमार जी प्रतिभाशाली संत हैं, आप पर्दे के पीछे काम करते हैं।
मुनि सिद्धप्रज्ञ जी को अपनी मंगलभावनाएँ प्रेषित करते हुए रतलाम सभाध्यक्ष अशोक दक, अतिथि पैलेस के पीयूष दक, अभातेयुप से पुनीत भंडारी, बचपन के मित्र पारस आंचलिया, ज्ञातीजन की ओर से अभय बोरदिया ने अपने-अपने भावों की अभिव्यक्‍ति दी।
कार्यक्रम का संचालन करते हुए मुनि ध्रुव कुमार जी ने कहा कि रतलाम से सत्य रत्न मिला है। लोगों का साधु-संतों के प्रति विशेष सम्मान का भाव होता है।