व्यक्‍ति का चिंतन जीवन की दिशा तय करता है : आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

व्यक्‍ति का चिंतन जीवन की दिशा तय करता है : आचार्यश्री महाश्रमण

भीलवाड़ा, 28 अक्टूबर, 2021
वर्तमान भिक्षु परमपूज्य आचार्यश्री महाश्रमण जी आज महाश्रमण सभागार से भिक्षु विहार पधारे। अमृत देशना प्रदान करते हुए पूज्यप्रवर ने फरमाया कि हमारे पास प्रवृत्ति के तीन साधन हैंशरीर, वाणी और मन। हम शरीर के द्वारा चलना-फिरना आदि प्रवृत्तियाँ करते हैं। वाणी के द्वारा बोलते हैं और मन के द्वारा हम चिंतन करते हैं। अतीत की स्मृति और भविष्य के संदर्भ में कल्पना भी कर सकते हैं। ये तीन हमारी चेतना के मानो कर्मकर हैं। आदमी वचन से ज्यादा मन को प्रवृत्ति करने में काम लेता है। हमारा मन तो नींद में भी सक्रिय रहता है। चिंतन के द्वारा आदमी पाप कर्म का बंधन भी कर सकता है तो चिंतन के द्वारा कर्म निर्जरा भी करता है और पुण्य का बंध भी साथ में कर सकता है। चिंतन आदमी का प्रशस्त होना चाहिए। एक चिंतन के द्वारा आदमी दु:खी बन जाता है, दूसरे चिंतन के द्वारा आदमी सुखी बन जाता है। चिंतन से आदमी तनावग्रस्त या तनाव-मुक्‍त भी रह सकता है। हमारा मन चंचल है। पर संभवत: इतनी चंचलता की अपेक्षा नहीं होती। अनावश्यक मन की चंचलता की छँटनी करने का भी हमें प्रयास करना चाहिए। पहली बात हैअसद् चिंतन न करें। अशुभ और बुरा चिंतन न करें। दूसरी बात हैजो चिंतन करें वो शुभ हो, अच्छा हो, प्रशस्त हो। तीसरी बात हैअच्छा चिंतन भी जो आवश्यक नहीं है, हम अचिंतन की दिशा में आगे बढ़ने का प्रयास करें।
तीन शब्द हैंअशुभ योग, शुभ योग और अयोग। अशुभ योग से निवृत्त हो, शुभ योग में आ जाएँ। शुभ योग को भी कम करें, अयोग अवस्था में आने का प्रयास करें। संपूर्ण अयोगावस्था तो इस जीवन में चौदहवें गुणस्थान में आ सकती है। वो अभी यहाँ संभव
नहीं मानी गई है। फिर भी जितना योगों की प्रवृत्ति को कम कर सकें, निर्वद्य और शुभ योगों को भी रोक सकें वो प्रयास करें तो हम अयोग का कुछ रसास्वादन ले सकते हैं। चिंतन से आदमी दु:खी बन जाता है। चिंतन से सुखी भी बन जाता है। यह एक प्रसंग से समझाया कि आदमी अभाव को न देखे, भाव को देखे। चिंतन बदलने से आदमी दु:खी से सुखी बन सकता है। चिंता नहीं चिंतन करो। व्यथा नहीं व्यवस्था करो। प्रशस्ति क्या प्रस्तुति करो। ऐसे चिंतन से हमारा जीवन अच्छा बन सकता है।
मैं भिक्षु विहार जो आचार्य भिक्षु सेवा संस्थान का उपक्रम है, उसमें बैठा हूँ। जैविभा में भी साधुओं के ठिकाने को भिक्षु विहार भी कहते हैं। भिक्षु के दो अर्थ हो जाते हैं। एक तो भिक्षु यानी साधु। दूसरा भिक्षु स्वामी के नाम से भिक्षु विहार। भिक्षु स्वामी का नाम स्मरण में आ सकता है। भिक्षु स्वामी का कितना जप होता है, कितने उनके नाम से गीत हैं। जैसे तीर्थंकरों में भगवान पार्श्‍व का जितने मंदिर भगवान पार्श्‍व के हैं, उतने और तीर्थंकरों के बहुत कम हैं। परमपूज्य भिक्षु स्वामी का हम नाम स्मरण करते रहें, उनसे हमें प्रेरणा मिलती रहे। कार्यक्रम का संचालन करते हुए मुनि दिनेश कुमार जी ने समझाया कि हम मन से चिंतन प्रशस्त करें, ताकि हमारा जीवन अच्छा रहे।