स्वेच्छा से सर्वस्व का त्याग साधु की सबसे बड़ी संपत्ति : आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

स्वेच्छा से सर्वस्व का त्याग साधु की सबसे बड़ी संपत्ति : आचार्यश्री महाश्रमण

भीलवाड़ा, 27 अक्टूबर, 2021
दीक्षा प्रदाता, तेरापंथ के अधिमान्य आचार्यश्री महाश्रमण जी ने अमृत प्रेरणा प्रदान करते हुए फरमाया कि भारत में, दुनिया में अनेक-अनेक ॠषि-महर्षि, संत पुरुष हुए हैं। उनमें से कईयों ने तो आत्म-साक्षात्कार, केवलज्ञान भी प्राप्त कर लिया, आध्यात्मिक साधना के द्वारा उन्होंने परम को प्राप्त किया था। जो साक्षात्-द‍ृष्टा ॠषि होते हैं, सर्वज्ञ होते हैं, उनकी जो वाणी प्रस्फुटित होती है, उसमें बहुत सार हो सकता है। ऐसी आर्षवाणी में जो शास्त्र बनते हैं, उनका भी अपना महत्त्व होता है। शास्त्र की ही वाणी है कि त्यागी वह होता है जो स्वाधीनतापूर्वक, स्व-वशता में भोगों का त्याग कर देता है। एक आदमी विवशता में सांसारिक सुख नहीं भोग सकता, वह कोई त्यागी पुरुष नहीं है। साधु के वेश में सब त्यागी बन जाएँ, यह अत्याशा है, मुश्किल है। हम सभी त्यागी हैं, जिन्होंने घर को छोड़ दिया है। साधना के मार्ग पर आगे बढ़ गए हैं। सारे कोई महाव्रती साधु न भी बन सकें तो गृहस्थ जीवन में अणुव्रती बनो। अणुव्रत के छोटे-छोटे नियम हैं। इनसे गृहस्थ सद्गृहस्थ बनकर अच्छा जीवन जी सकता है। गृहस्थ आदमी राजनीति के क्षेत्र में व सामाजिक क्षेत्र में भी काम कर सकता है। विभिन्‍न रूपों में अपनी सेवा दे सकता है। वह किसी भी क्षेत्र में रहे, नैतिकता उसके साथ रहे। अहिंसा, नशामुक्‍ति उसके साथ रहे। दीक्षा समारोह पर आचार्यप्रवर ने फरमाया कि भारतीय संस्कृति में संन्यास की दीक्षा की प्रथा, परंपरा भी है। हमारे अनेक साधु-साध्वियाँ जो बालावस्था में या बड़ी उम्र में साधु-साध्वी बने और संयम पथ पर आए हैं। घर-परिवार संपति को छोड़ देना बड़ा त्याग है। यह एक प्रसंग से समझाया। यह दीक्षा छोटे परिवार को छोड़कर मानो बड़े परिवार में आने का प्रयास है। इनके माता-पिता स्वीकृति दे देते हैं, वो भी बड़ी बात है। भारतीय ॠषि परंपरा में यह दीक्षा की परंपरा आज भी जीवित है। जैन धर्म में दीक्षा लेना तो बड़ी बात होती है। पाँच महाव्रत ग्रहणीय होते हैं। सर्व हिंसा, झूठ, चोरी का जीवन भर त्याग। जीवन भर ब्रह्मचर्य की साधना करना व किसी तरह का परिग्रह नहीं रखना। जैन साधु पद-यात्रा करता है। रात्रि भोजन नहीं करता है। रात में पानी नहीं पीना। साधु भिक्षाजीवी होता है। गोचरी करता है। साधु के पास न रुपया-पैसा, न जमीन-आश्रम। त्याग ही हमारी संपत्ति है। ये संपत्ति गृहस्थ के पास नहीं। साधु अकिंचन होता है। दीक्षा संस्कार प्रदान करते हुए पूज्यप्रवर ने आर्षवाणी का स्मरण किया। जैन शासन, उसके अंतर्गत भैक्षव शासन के दीक्षा समारोह का प्रसंग। पूज्यप्रवर ने दीक्षार्थी के माता-पिता से मौखिक आज्ञा ली। दीक्षार्थी बहन से भी दीक्षा की सहमति ली। नमस्कार महामंत्र के उच्चारण से दीक्षार्थी को सर्वसावद्य प्रवृत्ति का तीन करण-तीन योग से यावज्जीवन के लिए त्याग करवाया। नवदीक्षित साध्वी ने पूज्यप्रवर को वंदना की। पूज्यप्रवर ने शास्त्र वाणी से अतीत की आलोचना करवाई। नवदीक्षित का केश लोचन का संस्कार साध्वीप्रमुखाश्री जी ने किया। साध्वी प्रमुखाश्री जी ने नव दीक्षित साध्वी को पूज्यप्रवर की मंगल आर्षवाणी के साथ रजोहरण प्रदान करवाया। पूज्यप्रवर ने नव दीक्षित साध्वी का नामकरण संस्कार करते हुए नया नाम साध्वी रोहिणीप्रभा प्रदान करवाया। पूज्यप्रवर ने गृहस्थों को नवदीक्षित साध्वी को वंदना करने का निर्देश फरमाया नवदीक्षित साध्वी को हर चर्या में संयम रखने की प्रेरणा प्रदान करवाई। अनुशासन का ओज आहार अंदर बाद में प्रदान करवाया जाएगा। नवदीक्षित साध्वी को साध्वीप्रमुखाश्री जी के निर्देशन में रहने का निर्देश प्रदान करवाया। पूज्यप्रवर की नव्य कृतियाँ उठो शिष्य एवं भगवान ने कहा श्रीचरणों में जैविभा द्वारा लोकार्पित की गई। पूज्यप्रवर ने फरमाया कि जैन आगम ठाणं के आधार पर काफी प्रवचन किए हैं। उनमें से संभवत: कुछ प्रवचनों पर आधारित यह ग्रंथ हैभगवान ने कहा। उठो शिष्य पुस्तक जो परमपूज्य आचार्य महाप्रज्ञ जी की एक किताब हैसंबोधि। उस पर भी मैंने अनेक-अनेक प्रवचन किए हैं। संभवत: उन्हीं प्रवचनों में से कुछ प्रवचनों पर आधारित है, यह पुस्तकउठो शिष्य। भगवान महावीर ने मुनि मेघकुमार को मानो उठने का प्रतिबोध दिया था। ये दो पुस्तकें आई हैं। जैविभा जो ज्ञान के प्रसार में अपना योगदान दे रही हैं। जैविभा भी खूब आध्यात्मिक सेवा करती रहे। ये पुस्तकें पाठक को आध्यात्मिक प्रेरणा देने में निमित्त बने ऐसी मंगलकामना। मुख्य नियोजिका जी ने कहा कि आचार्य जीत व्यवहार के आधार पर मर्यादाओं में परिवर्तन कर सकते हैं। वर्तमान में समीक्षा परिषद में चिंतन कर आचार्य निर्णय करते हैं। आचार्य व्यवहार के ज्ञाता होते हैं, इसलिए प्रायश्‍चित के दाता होते हैं। सैयद शाहनवाज हुसैन जो जैविभा के राष्ट्रीय प्रवक्‍ता हैं, ने अपनी भावना श्रीचरणों में व्यक्‍त की। व्यवस्था समिति के अध्यक्ष प्रकाश सुतरिया ने मुमुक्षु प्रेक्षा एवं समागत अतिथियों का स्वागत किया। दीक्षार्थी मुमुक्षु प्रेक्षा का परिचय मुमुक्षु राजुल से दिया। मुमुक्षु प्रेक्षा ने अपनी भावना अभिव्यक्‍त की। पारिवारिक जनों ने दीक्षार्थी को दीक्षा की आज्ञा प्रदान की। आज्ञा पत्र का वाचन बजरंग जैन ने किया।  साध्वीप्रमुखाश्री जी ने शिक्षा-प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि आज आचार्यप्रवर की सन्‍निधि में प्रतिदिन आध्यात्मिक उपक्रम होते रहते हैं, पर दीक्षा का कार्यक्रम अपने आपमें अधिक महत्त्वपूर्ण है। दीक्षित होने वाले के लिए भी महत्त्वपूर्ण है, तो दीक्षा का कार्यक्रम देखने वालों के मन में भी उत्सुकता होती है। किसी-किसी के मन में सत्य का साक्षात्कार करने की भावना जागृत होती है। दीक्षा का मार्ग कष्टपूर्ण है पर अंतिम परिणति सुखद होती है, जब ममत्व का धागा टूट जाता है, तो दीक्षा की भावना जागृत होती है। शाहनवाज हुसैन का आना हुआ है, राजनीति से जुड़े हुए हैं। राजनीति भी एक सेवा का कार्य होता है। सेवा में निर्मलता रह सकती है। हुसैनजी आध्यात्मिक-धार्मिक द‍ृष्टि से भी आगे बढ़ते रहें और भी लोग हैं, सभी अपने-अपने क्षेत्रों में नैतिक मूल्यों को बनाए रखने का व जहाँ भी अपना सर्कल है वहाँ नैतिकता को पुष्ट बनाए रखने का प्रयास करते रहें। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया तथा समझाया कि साधुत्व आत्मोदय के लिए होता है।