स्वस्थ समाज की रचना के लिए अहिंसक विचारधारा बहुत जरूरी : आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

स्वस्थ समाज की रचना के लिए अहिंसक विचारधारा बहुत जरूरी : आचार्यश्री महाश्रमण

भीलवाड़ा, 18 अक्टूबर, 2021
सुखों के सागर आचार्यश्री महाश्रमण जी ने प्रेरणा पाथेय प्रदान करते हुए फरमाया कि जैन शास्त्रों की प्राकृत अर्द्धमागधी और श्‍लोकों के माध्यम से, कहीं पद्य के माध्यम से, विभिन्‍न निर्देश, विभिन्‍न जानकारियाँ आगम वांङ्मय में प्राप्त होती है। यहाँ सूयगड़ो के प्रथम अध्ययन में बंधन को जानने और उसको तोड़ने का मुख्य निर्देश दिया गया है कि जानो बंधन क्यों है? फिर बंधन को तोड़ने का प्रयास करो। बाहर का बंधन भी होता है। किसी आदमी को बाँध दिया है, वह भी छोटा बंधन है। बड़ा बंधन है, जिसकी चर्चा यहाँ शास्त्र में की गई है, वह परिग्रह का बंधन है। परिग्रह, मूर्च्छा, आसक्‍ति से आदमी बंध जाता है। वह बड़ा बंधन होता है। परिग्रह से जुड़ा हुआ एक दूसरा बंधन और है, वह हैहिंसा। परिग्रह और हिंसा इन दोनों का आपस में संबंध है। हिंसा कार्य के रूप में सामने आती है, परिग्रह उसका कारण बनता है। परिग्रह है, तो हिंसा को छोड़ना मुश्किल प्रतीत हो रहा है। हिंसा और परिग्रह एक वस्त्र के दो सिरे के समान हैं। परिग्रह को पकड़कर रखेंगे तो हिंसा भी साथ में रहेगी। अहिंसा परमो धर्म: कहा जाता है, तो अपरिग्रह भी बड़ा धर्म है। लोभ है, वो हिंसा को जन्म देने वाला बन जाता है। तभी कहा गया है कि पाप का बाप लोभ होता है। शास्त्रकार ने बताया है कि परिग्रह ही मनुष्य प्राणियों का स्वयं हनन करता हैं दूसरों से हनन भी करा देता है और हनन करने वाले का अनुमोदन कर देता है। इस प्रकार हिंसा में प्रवृत्त आदमी अपने बैर को बढ़ाता है। वह दु:ख से मुक्‍त नहीं हो सकता।
बंधन को तोड़ना है, तो परिग्रह को भी तोड़ना होगा, हिंसा के बंधन को भी तोड़ना होगा। परिग्रह का बंधन टूट गया तो हिंसा का बंधन अपने आप ही लगभग संपूर्णतया खत्म हो जाएगा। राग और द्वेष हिंसा के बीज हैं। परिग्रह इसको उत्तेजित करने वाला है। आदमी ध्यान दे कि मैं परिग्रह से कितना विरक्‍त हो सकता हूँ, हिंसा को कितना छोड़ सकता है। संपूर्णतया हिंसा और परिग्रह को छोड़ना देहधारी के लिए मुश्किल है, परंतु अल्पीकरण किया जा सकता है। बारह व्रतों में स्थूल प्राणातिपात और इच्छा-परिमाण की बात आती है और भोगोपभोग परिमाण के सीमा करने की बात आती है। यह एक प्रसंग से समझाया कि परिग्रह की चेतना जागने से किस तरह हिंसा हो जाती है। अर्थ-अनर्थ का कारण बन सकता है। ऐसे धन को तो मानो धिक्‍कार है। अणुव्रत आंदोलन में भी अहिंसा की बात है। हर आदमी गार्हस्थ्य में भी अहिंसा का अनुसरण करें। अहिंसा से समाज भी सुरक्षित रह सकता है। कभी आदमी प्रेम-सौहार्द कर लेता है, तो कभी आदमी की आकृति में राक्षस भी दिखाई देता है। स्वस्थ समाज की रचना के लिए अहिंसा की विचारधारा, अहिंसा का दर्शन, अहिंसा का तत्त्व बहुत जरूरी होता है।
अहिंसा को राष्ट्र के संदर्भ में देखें। पड़ोसी राष्ट्र मैत्री से रहें तो कितना अच्छा लगता है। पड़ोसी-पड़ोसी शांति से रहे। हिंसा दु:ख को, अशांति को पैदा करने वाली होती है। आचार्य महाप्रज्ञ जी ने अहमदाबाद में 2002 की हिंसा में कहा था कि हिंसा में रहोगे तो पिछड़ जाओगे, अहिंसा में रहोगे तो विकास हो सकेगा। शास्त्रकार ने बताया है कि हिंसा से बैर बढ़ता है। बैर से बैर शांत नहीं होता। अबैर से बैर शांत हो सकता है। हम मैत्री-अहिंसा के द्वारा हिंसा को बंध करने का प्रयास करें। अहिंसा के पथ पर चलें, यह दु:ख मुक्‍ति का मार्ग है। मोक्ष का मार्ग है। मुख्य नियोजिका जी ने कहा कि जो व्यक्‍ति पराधीन होता है, उसे कभी भी किसी प्रकार का कोई सुख नहीं होता है। साधना का संबंध किसी व्यक्‍ति के साथ नहीं होता है, उसका संबंध तो अपने व्यक्‍तिगत जीवन के साथ में होता है। साध्वीवर्या जी ने कहा कि मुहूर्त भर ही जीयो, पर अंगारे की तरह प्रज्ज्वलित बनकर जीयो। धूएँ की तरह लंबा जीवन जीना श्रेयस्कर नहीं होता है। जलती हुई अग्नि पर कोई पैर नहीं रखता है, पर जब वह बुझ जाती है, तो पैरों से कुचली जाती है।
पूज्यप्रवर की सन्‍निधि में अणुव्रत लेखक संगोष्ठी, अणुव्रत विश्‍व भारती के तत्त्वावधान में शुरू हुआ। अणुविभा ने उत्कृष्ट व नैतिक लेखन के लिए अणुव्रत लेख पुरस्कार-2021 डॉ0 वेदप्रताप वैदिक को एवं 2020 का लेखक पुरस्कार राजस्थान के मुख्यमंत्री के विशेषाधिकारी डॉ0 फारूख अफरीदी को दिया गया। अणुविभा के अध्यक्ष संचय जैन ने अपनी भावना रखी। उपाध्यक्ष राजेश सुराणा ने प्रशस्ति-पत्र का वाचन किया। पुरस्कार प्राप्तकर्ताओं ने अपनी भावना अभिव्यक्‍त की। व्यवस्था समिति व स्थानीय अणुव्रत समिति द्वारा भी पुरस्कार प्राप्तकर्ताओं का सम्मान किया गया। कार्यक्रम का संचालन करते हुए मुनि दिनेश कुमार जी ने बताया कि व्यक्‍ति का साधना स्तर ऊँचा होता है, तब वह शक्‍ति से संयोजित होता है।