अर्थ और काम पर धर्म का अंकुश अपेक्षित होता है : आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

अर्थ और काम पर धर्म का अंकुश अपेक्षित होता है : आचार्यश्री महाश्रमण

भीलवाड़ा, 22 अक्टूबर, 2021
शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमण जी ने मंगल देशना प्रदान करते हुए फरमाया कि रात्रि का समय है, मुख्य प्रवचन कार्यक्रम रात्री में हो रहा है। दिन बीत गया, रात आ गई। रात बीतेगी दिन आ जाएगा। यह काल का क्रम चल रहा है। महीने में दो पक्ष होते हैं। एक कृष्ण पक्ष और दूसरा शुक्ल पक्ष। इसी प्रकार अहोरात्र के दो हिस्से कृष्ण और शुक्ल होते हैं। दिन को शुक्ल और रात्रि को कृष्ण के रूप में मान लें। हर दिन ये दो विभाग आते हैं। कवि ने कहा है कि हर महीने में दो पक्ष हैं जिन्हें कृष्ण और शुक्ल कहा गया है। जबकि जितनी चाँदनी शुक्ल पक्ष में होती है, उतनी ही कृष्ण पक्ष में आती है। पर यश पुण्याई से मिलता है। पर शुक्ल पक्ष-कृष्ण पक्ष इसलिए कहा गया है कि कृष्ण पक्ष में अंधकार की वर्धमानता होती है और शुक्ल पक्ष में चाँदनी की वर्धमानता होती है। वो अभिमुखता का अंतर पड़ जाता है। जिधर अभिमुखता है, उसका महत्त्व है। आदमी के जीवन में कभी अंधकार आ सकता है, कभी प्रकाश आ सकता है। जब जीवन में निराशा का कुहासा आ जाता है, तो एक प्रकार का अंधकार सा आ जाता है। जब चित्त में प्रसन्‍नता है, आशा की किरण है, उत्साह से आदमी कार्य करता है, आगे बढ़ता है, तो वह एक प्रकाश का समय होता है। आदमी के जीवन के आचरणों में भी कहीं अंधेरा है, कहीं प्रकाश है। जीवन को अध्रुव कहा गया है। जीवन आदमी का अशाश्‍वत है। जीवन के बाद अगला जीवन प्राप्त होता है। मनुष्य यह सोचे कि मृत्यु के बाद मेरा क्या होगा? आगे मैं कहाँ जा सकता हूँ, आगे के लिए मैं क्या कर रहा हूँ। वर्तमान जीवन तो छोटा सा है। देवगति और नरक गति का तो कितना लंबा आयुष्य है। पता नहीं आगे कितने जन्म लेने पड़ सकते हैं, आगे तो लंबा काल है। इस छोटे से काल का उपयोग लंबे काल के संदर्भ में भी करें। वर्तमान भी अच्छा रहे और आगे के जन्म भी अच्छा रहे।
आगे जन्म-मरण कम हो जाए, मोक्ष हमें जल्दी मिल जाए। यह एक प्रसंग से समझाया। भावी प्राणी को तो सीमित जन्म लेने पड़ते हैं, पर अभव्य को तो अनंत-अनंत जन्म लेने पड़ते हैं। सीमित जन्म हो गए तो मुक्‍ति तो शीघ्र हो सकेगी। हमें जन्म-मरण ज्यादा न करना पड़े इसके लिए साधना, प्रयास, पुरुषार्थ करना चाहिए। छोटे नजदीक के देवलोकों में जाना इसलिए लाभदायी हो सकता है कि वहाँ का आयुष्य ऊपर के देवलोकों से बहुत कम है। देवलोक कितना ऊँचा मिलेगा एक बात है, मुक्‍ति कितनी जल्दी मिलेगी वो एक बात है। हमें आगे के बारे में भी सोचना चाहिए। आगे का जीवन हमारा कैसे अच्छा रहे, उसके लिए वर्तमान पर ध्यान देना जरूरी है। हमारा वर्तमान जीवन वर्तमान के लिए ही न हो, हमारा वर्तमान जीवन बहुतया तो भविष्य के लिए हो। मोक्ष प्राप्ति के लिए मोक्ष मार्ग को जानकर भोगों से निवृत्त बनो। भोगों को छोड़कर योग के मार्ग पर चलो। त्याग के पथ पर चलो। भोग अधर्म है, त्याग धर्म है। जीवन में जितना त्याग-तप का क्रम आगे बढ़ता है, सम्यक् ज्ञान, दर्शन, चारित्र की साधना अच्छी होती है, तो आदमी सिद्धि गति की दिशा में आगे बढ़ सकता है।  परम पूज्य आचार्य भिक्षु और जयाचार्य के साहित्य को देखें, कितना ज्ञान भरा है। गुरुदेव तुलसी और आचार्य महाप्रज्ञ जी का कितना साहित्य है। स्वाध्याय करने से कई बार बड़ा आलोक मिलता है। पथ दर्शन अच्छा मिल सकता है, जीवन की शैली अच्छी हो सकती है। आदमी का द‍ृष्टिकोण अच्छा हो सकता है। आदमी अध्यात्म और मोक्ष की दिशा में अच्छी गति-प्रगति भी कर सकता है। गृहस्थ के जीवन में अर्थ भी अपेक्षित होता है। चार पुरुषार्थ बताए गए हैंअर्थ, काम, धर्म और मोक्ष। अर्थ और काम पर धर्म का अंकुश रहे। अर्थ और काम रथ के दो पहिए हैं, धर्म सारथी के रूप में हैं। हम अपने जीवन में वर्तमान को भी देखें और भविष्य को और विशेषतया देखें ताकि हमारा यह वर्तमान भविष्य का भावित करने वाला बन सके।
आज भी पूज्यप्रवर ने नगर भ्रमण हेतु चतुर्मास स्थल से विहार किया। पूज्यप्रवर ने कोठारी विद्या स्कूल में विद्यार्थियों को प्रेरणा पाथेय प्रदान करवाया। संसारपक्षीय संस्था में मुनि प्रतीक कुमार जी ने गुरु चरणों में प्रस्तुति दी। पूज्यप्रवर बापूनगर के महाप्रज्ञ सेवा संस्थान में पधारे। आजादनगर के महाप्रज्ञ भवन में पूज्यप्रवर का पधारना हुआ।