हम समय का आत्मकल्याण की द‍ृष्टि से यथोचित उपयोग करें : आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

हम समय का आत्मकल्याण की द‍ृष्टि से यथोचित उपयोग करें : आचार्यश्री महाश्रमण

भीलवाड़ा, 23 अक्टूबर, 2021
हमारी ज्ञान चेतना को उज्ज्वल बनाने वाले परम पूज्य आचार्यश्री महाश्रमण जी ने अमृत देशना प्रदान करते हुए फरमाया कि सुयगड़ो आगम में शास्त्रकार ने बंधन की बात प्रथम श्‍लोक में कही थी। बंधन में हिंसा और परिग्रह इन दो तत्त्वों का वर्णन चल रहा है। प्रस्तुत श्‍लोक में शास्त्रकार ने कहा है कि एक बात पर ध्यान देना चाहिए कि धन और अपने सगे भाई-बहन। गृहस्थ के पास धन और भाई-बहन हो सकते हैं। माँ-बाप से नैकट्य हो सकता है, उनके अलावा भाई-बहन का भी अपना नैकट्य होता है। धन के प्रति ममत्व भी गृहस्थ के मन में हो सकता है। पर धन हो या भाई-बहन ये त्राण नहीं दे सकते। एक सीमा तक सहयोग में भूमिका अदा कर सकते हैं। अंतिम त्राण नहीं दे सकते हैं। कर्म जब उदय में आते हैं, तब स्वयं को ही भोगने पड़ते हैं। व्यावहारिक संदर्भ में त्राण दे सकते हैं, पर निश्‍चय के संदर्भ में खुद के कर्म उदय आने पर दूसरे कितने त्राण बन सकते हैं। काल सौकरिक कसाई की मृत्यु के पश्‍चात उसके परिवार के मुखिया के रूप में उसके बेटे का नियुक्‍त करने का प्रसंग समझाया। सुलस ने कहा कि मैं रोज 500 भैंसों का वध नहीं कर सकता। हिंसा तो अपने आपमें नरक का हेतु है।
पारिवारिक जनों के कहने पर भी सुलस ने कुल्हाड़ी का वार भैंसे पर न कर स्वयं के पैर पर किया और बोला मेरे पैरों में पीड़ा हो रही है, आप लोग इसका हिस्सा बँटाइए। दु:ख में सहभागी बनें। पारिवारिकजन बोलेदु:ख को बाँटा नहीं जा सकता, खुद को ही भोगना पड़ता है। सुलस बोलातो आपने कैसे कहा था कि भैंसे को मारने पर जो पाप लगेगा उसका हिस्सा हम बँटा लेंगे।
सुलस बोलाकोई पाप का हिस्सा बँटा ही नहीं सकता तो मैं पाप कर्म क्यों करूँ? पीड़ा होती है, तो सगा भाई भी कितना बँटा सकता है, स्वयं को ही भोगना पड़ता है। गृहस्थों के पास करोड़ों की धन-संपत्ति हो सकती है, पर बीमारी में तो डॉक्टर भी उत्तर दे देता है। वो करोड़ों की धन-संपत्ति क्या काम आए? वो वेदना दूर नहीं कर सकती। इस बात का चिंतन करना चाहिए कि धन या भाई-बहन त्राण नहीं दे सकते। दूसरी बात है कि जीवन दौड़ रहा है, मृत्यु की ओर। इसका हम अनुप्रेक्षण-चिंतन करें। जैसे सर्दी के दिन भागे जा रहे हैं, वैसे ये जीवन भागा जा रहा है। जन्मदिवस आता है, इसकी एक सच्चाई यह भी है कि मेरा एक साल तो गया। फिर क्या करें? इसके लिए कर्मों को तोड़ने की साधना करें। बंधन को तोड़ने की साधना करें। वह साधना करते हैं, तो फिर वह जीवन भागे तो भागे। दिन-रात की 60 घड़ियाँ होती हैं। कितनी घड़ियाँ धर्म-ध्यान में लगाते हैं। 24 मिनट की एक घड़ी। गृहस्थ सोचे इन साठ घड़ियों में कुछ हिस्सा धर्म में लगाता हूँ या नहीं। शेष दो घड़ी का समय भी साधना के लिए निकालते हैं, तो अच्छी बात है। 
कम से कम एक सामायिक तो रोज हो जाए। शनिवार की 7 से 8 की भी सामायिक हो। जहाँ भी रहें समय निकालें। कुछ समय स्वयं के लिए निकालें। समय बीत रहा है। गीत में भी सुंदर कहा गया हैसजग बनो बीती जा रही घड़ी। गीत का सुमधुर संगान किया। शास्त्रकार ने कहा है कि जीवन दौड़ रहा है, समय बीत रहा है। हम समय का आत्म-कल्याण की द‍ृष्टि से यथोचित उपयोग करने का प्रयास करें, यह काम्य है। पूज्यप्रवर ने तपस्या के प्रत्याख्यान करवाए। पूज्यप्रवर की सन्‍निधि में टीपीएफ के तत्त्वावधान में मेधावी सम्मान समारोह-2021 का आयोजन हुआ। पूज्यप्रवर ने आशीर्वचन फरमाया। मुख्य नियोजिका जी ने कहा कि साधक संकल्प करता है कि कभी षट्-जीवनिकाय की हिंसा नहीं करूँगा। अप्रमाद के प्रायश्‍चित के लिए साधु या साधक मिच्छामि दुक्‍कड़ं बोलता है। प्रायश्‍चित पाप की निवृत्ति के लिए किया जाता है। टीपीएफ राष्ट्रीय अध्यक्ष नवीन पारख ने अपनी भावना रखी। व्यवस्था समिति के अध्यक्ष प्रकाश सुतरिया ने पुलिस राष्ट्रीय गौरव रक्षक श्रीचरणों में अर्पित की। कार्यक्रम का संचालन करते हुए मुनि दिनेश कुमार जी ने समझाया कि गुरु से ज्ञान ग्रहण करना विशिष्ट बात होती है।