जीवन कैसे जीना ये चिंतन हमारे में स्पष्ट रहे : आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

जीवन कैसे जीना ये चिंतन हमारे में स्पष्ट रहे : आचार्यश्री महाश्रमण

भीलवाड़ा, 15 अक्टूबर, 2021
महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमण जी ने अमृत देषणा प्रदान करते हुए फरमाया कि इस लोक में छ: द्रव्य हैं। जिनमें पुद्गलस्तिकाय ही एक ऐसा तत्त्व है, जिसको आँखों से देखा जा सकता है। हालाँकि सारे पुद्गल हमारी आँखों के द‍ृश्य नहीं बनते हैं। परमाणु भी पुद्गल हैं। पर हमारे नेत्रों के लिए वे ग्राह्य नहीं बनते। इतने सूक्ष्म हैं, पर जो देखे जाते हैं, वे सब पुद्गल ही हैं। शास्त्रकार ने ठाणं के दसवें स्थान में बताया है कि पुद्गल अनंत हैं। पुद्गल-पुद्गल में भी गुणात्मक अंतर होता है। कोई नीला, पीला, श्‍वेत आदि होते हैं। फिर इनमें कितने गुणों वाली कलात्मकता या ललात्मकता होती है। आचार्यश्री महाप्रज्ञ जी ने पहले लिखा था कि मैं आत्मा को जानता हूँ पर मानता नहीं हूँ। जानना और मानना में अंतर है। साक्षात जो सामने या स्पष्ट होती है, उसको तो जाना जा सकता है। बाकी तो जो ग्रंथों में लिखा है, वो मान लेते हैं। ठाणं आगम में दस स्थान हैं। ये आज दसवें स्थान का अंतिम सूत्र आ गया है। ठाणं आगम का मेरा व्याख्यान अंतिम तक आ गया है। संपूर्णता को मानो प्राप्त हो रहा है।  हमारे 32 आगमों में 11 अंग स्वत: प्रमाण है, बहुत महत्त्वपूर्ण है। उनमें से ये तीसरा अंग ठाणं है। इसमें कहीं-कहीं टिप्पण भी विस्तृत रूप में आया है। गुरुदेव तुलसी के सान्‍निध्य में वि0सं0 2012 में आगम संपादन शुरू हुआ था। स्थानांग टीका भी है, टीका से व्याख्यान में सुलभता हो जाती है। टीकाकार अभयदेव सूरी के प्रति भी अहो भाव रखता हूँ। चूर्णि भी मिलती है, डब्बा और भाष्य भी मिलती है। जयाचार्य द्वारा जोड़ें लिखी गई हैं। जो राजस्थानी भाषा में है। व्याख्यान का भूषण है, आगम। आगम का अपना वैशिष्ट्य है। हमारे प्रथम अनुशास्ता आचार्य भिक्षु ने कितना आगमों का पठन-स्वाध्याय किया होगा और चारित्रात्माओं ने भी किया होगा। यह कार्य अविच्छनरूपेण चलती रहे। अब मैं ससम्मान इस ठाणं को स्थापित कर रहा हूँ। ठाणं आगम व्याख्यान-माला संपन्‍नता की घोषणा भी करता हूँ। जोधपुर निवासी सुनील भंडारी ने अपनी पुस्तक जीवन के रंग जीवन के संग पूज्यप्रवर के सान्‍निध्य में लोकार्पित किया। पूज्यप्रवर ने आशीर्वचन फरमाया कि अनेक आलेख इसमें समाविष्ट है। जीवन एक ऐसा कालमान है, उसको कैसे जीना यह बड़ी महत्त्वपूर्ण बात होती है। जीवन तो और भी जीव जी लेते हैं। जीवन कैसे जीना ये चिंतन हमारे में स्पष्ट रहे। जीवन को कैसे आध्यात्मिकता से समर्पित किया जा सके, ये साथ में विचारधारा भीतर से स्वीकृत हो जाए तो ये जीवन तो मानो छोटा-सा है, आगे के कालमान का हित हो सके, इस उद्देश्य के साथ और वर्तमान भी अच्छा रहे, इस उद्देश्य के साथ जीवन जीया जाए तो बहुत नि-श्रेयस्कर यह जीवन बन सकता है। भंडारी जी लोगों को अच्छे विचार, अच्छी सामग्री जो आध्यात्मिक-धार्मिक हो, देते रहें। भंडारी जी खूब आध्यात्मिक विकास करते रहें। ये छोटी-सी पुस्तक पाठक को चिंतन प्रदान करने वाली हो, मंगलकामना। भीलवाड़ा जिला एडवोकेट संघ का कार्यक्रम पूज्यप्रवर की सन्‍निधि में शुरू हुआ। पूज्यप्रवर ने आशीर्वचन फरमाया कि हमारी दुनिया में न्याय और अन्याय की बात होती है। अन्याय करना भी गलत है, अन्याय को बार्दश्त करना भी गलत होता है। अन्याय के विरुद्ध लड़ाई करना भी एक शौर्य की बात होती है। एडवोकेट एक ऐसा वर्ग है, जो अन्याय के खिलाफ जंग लड़ने वाला होता है। वकील के पास अपनी बौद्धिकता और तार्किक शक्‍ति अपेक्षित होती है। बौद्धिकता का अच्छा उपयोग है। जीवन-विज्ञान आदमी की चेतना को अच्छा बनाता है। अहिंसा यात्रा के भी तीन उद्देश्य हैंसद्भावना, नैतिकता और नशामुक्‍ति है, जिनका हम प्रचार-प्रसार कर रहे हैं। अनेकता में एकता रहे। जैन धर्म, तेरापंथ धर्मसंघ व साधुचर्या के बारे में विस्तार से बताया। पूज्यप्रवर ने अच्छा जीवन जीने की प्रेरणा दी। जिज्ञासाओं का समाधान किया। मुख्य नियोजिका जी ने काय-क्लेश व प्रतिसंल्लीनता तप को विस्तार से समझाते हुए कहा कि शरीर को कपड़ों से न ढकना, सर्दी को सहन करना ही काय-क्लेश होती है, खुजली न करना, उसे सहन करना, मुँह में थूक आए तो न थूकना व शरीर को विभूषा से दूर रखना भी काय-क्लेश की साधना है। इंद्रियों और मन का अपने विषयों में निवर्तन करना, अपने स्थान पर स्थिर रखना, प्रति संल्लीनता है। साध्वीवर्या जी ने नंदी संपन्‍नोऽम स्याम का विवेचन करते हुए कहा कि दो शब्द हैंसमृद्ध और दरिद्रता। सभी समृद्ध बनना चाहते हैं। समृद्धि दो प्रकार की होती हैद्रव्य पदार्थत्मक और आध्यात्मिकता। दोनों का वैभव आनंद देने वाला होता है, पर द्रव्य पदार्थत्मक समृद्धि अस्थायी है। आध्यात्मिक समृद्धि स्थायी होती है। मुनि कुमार श्रमण जी ने अपनी अभिव्यक्‍त दी। व्यवस्था समिति के अध्यक्ष प्रकाश सुतरिया ने वकीलों का स्वागत किया। सुनील भंडारी ने अपने अनुभव बताए। डॉ0 विजयलक्ष्मी नाणांवटी ने अपनी पुस्तक सतरंगा सीजन श्रीचरणों में अर्पित की। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।