कठिनाइयों का सामना करने पर मिलती है विशेष उपलब्धि : आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

कठिनाइयों का सामना करने पर मिलती है विशेष उपलब्धि : आचार्यश्री महाश्रमण

भीलवाड़ा, 9 अक्टूबर, 2021
शक्‍ति पुंज, शक्‍तिधर आचार्यश्री महाश्रमण जी ने अमृत देषणा प्रदान करते हुए फरमाया कि ठाणं आगम में दस प्रकार के स्थविर बताए गए हैं। स्थविर कौन होता है। जो ज्येष्ठ होता है, वह स्थविर होता है। प्रश्‍न हैबड़ा किस द‍ृष्टि से हो? शास्त्रकार ने जो दस प्रकार बताए हैं, उनसे यह निचोड़ निकाला जा सकता है, किन संदर्भों में आदमी बड़ा होता है। पहला प्रकार हैग्राम स्थविरगाँव का स्थविर जैसे ग्राम पंचायत का सरपंच। जो मान्य है, शक्‍तिशाली है, गाँव का अधिकारी है। दूसरा हैनगर स्थविर। नगर का मुखिया नगरपालिका का अध्यक्ष। तीसरा प्रकार हैराष्ट्र-स्थविर। राष्ट्र का अधिकृत आदमी। जैसे लोकतंत्र में राष्ट्रपति या प्रधानमंत्री। चौथा प्रकार हैप्रशास्ता स्थविर। धर्मोपदेशक, अध्यात्म की, धर्म की बातें बताने वाला। अधिकृत प्रवचनकार। पाँचवाँ प्रकार हैकुल स्थविर, छठा प्रकार हैगण स्थविर, सातवाँ प्रकार हैसंघ-स्थविर। कुल, गण या संघ का मुखिया। कुल, गण और संघ लौकिक भी होते हैं और लोकोत्तर भी होते हैं। लौकिक संदर्भ में ये शासन-प्रशासन की ईकाईयाँ रही हैं। पहले कुलकर व्यवस्था थी, बाद में गणराज्य की व्यवस्था हुईं बाद में संघराज्य की व्यवस्था हुई। इनकी व्यवस्था करने वाला मुखिया या स्थविर होता है। राजा भी अपने राज्य का स्थविर होता है। ये शासन की प्रणालियाँ लौकिक क्षेत्र में रही है। हम लौकोत्तर-धर्म के क्षेत्र में देखें। यहाँ भी गण-संघ होता है, कुल की बात भी रही है। साधु संस्था में एक आचार्य का शिष्य समुदाय है, वह कुल कहलाता है। तीन आचार्यों का शिष्य समुदाय है, वह गण कहलाता है। अनेक आचार्यों के शिष्यों का समुदाय है, वो संघ कहलाता है। इनमें जो मुख्य व्यक्‍ति होता है, वह कुल स्थविर, गण स्थविर, संघ स्थविर होता है। हमारे जैन शासन में स्थविर की भी व्यवस्था आती है, कि शिष्य हैं, किसी में अच्छी श्रद्धा उत्पन्‍न नहीं हुई तो धर्म में श्रद्धा उत्पन्‍न करना। या किसी की श्रद्धा कमजोर पड़ गई, विचलित हो गया, उसको वापस मजबूत कर देना, संघ व धर्म में स्थिर कर देता है, वह साधु-संस्था में स्थविर होता है। आठवाँ प्रकार हैजाति स्थविर। जो उम्र से बड़ा हो जाए, 60 वर्ष की उम्र से बड़ा हो गया, अब वह जाति स्थविर हो गया। नवमाँ प्रकार हैश्रुत स्थविर। जो ज्ञान की द‍ृष्टि से बड़ा होता है। जो आगमों का ज्ञाता है। दसवाँ प्रकार हैस्थविर का पर्याय स्थविर। जो संयम पर्याय से बड़ा हो गया। कम से कम 20 वर्ष का संयम पर्याय हो गया तो बड़ा स्थविर हो गया। यों दस प्रकार हो गए। जो उम्र में बड़ा हो गया उसके प्रति सम्मान व अनुकंपा का भाव रखो। जो ज्ञान में बड़ा है, श्रुत स्थविर है, उसका भी पूजा-सम्मान होना चाहिए। जो पर्याय में बड़ा है, उसकी वंदना करें, वो वंदनीय है। जो जाति स्थविर है, उसकी उसके स्वास्थ्य प्रकृति व काल के अनुसार अनुकूल आहार लाकर देना चाहिए। उनकी व्यवस्था अच्छी हो जाए।
एक ज्येष्ठ जो उम्र के संदर्भ में बड़ा आदमी, दूसरा है, ज्ञान के संदर्भ में बड़ा व्यक्‍ति, तीसरा संयम के पर्याय में बड़ा व्यक्‍ति, चौथा पद-अधिकार की द‍ृष्टि से बड़ा व्यक्‍ति। बड़े होने के चार संदर्भ हो जाते हैं। गुरुदेव तुलसी 22 वर्ष की उम्र में आचार्य बन गए थे पर संयम पर्याय में बड़े साधुओं को वे वंदना करते थे। जो सात स्थविर ग्राम, नगर, राष्ट्र प्रशासन (प्रशासक) कुल, गण व संघ ये पद अधिकार आदि के रूप में बड़े होते हैं। आठवाँ उम्र के हिसाब से बड़ा, नौवाँ श्रुत के हिसाब से बड़ा और दसवाँ पर्याय के हिसाब से बड़ा। पूज्य पूजा का भी प्रोटोकोल होता है कि किसका कितना सम्मान होना चाहिए। कोई संयम पर्याय में बड़ा है, कम पढ़ा लिखा है, तो भी ज्यादा पढ़ा लिखा उन्हें वंदन करें। इन चारोंं में वंदन की द‍ृष्टि से देखें तो साधु-संस्था में सबसे बड़ा स्थविर है, वो पर्याय स्थविर हैं। ज्ञानी या अधिकारी संत हैं, वो भी पर्याय स्थविर को वंदन करे। उम्र में बड़ा है, पर्याय में छोटा है, तो पर्याय में बड़े को वंदन करे। साधु-संस्था में पर्याय स्थविर का सबसे बड़ा महत्त्व है। वर्तमान में हमारे मुनि हर्षलाल जी स्वामी हैं, वो पुरुष चारित्रात्माओं में सबसे बड़े हैं। आपके लिए कोई साधु वैधानिक रूप में वंदनीय नहीं है, आप सबके वंदनीय हैं। संयम पर्याय के सामने उम्र-ज्ञान व पद भी गौण है। शास्त्रकार ने एक सुंदर जानकारी यहाँ दी है। पूज्यप्रवर ने प्रवचन से पूर्व नवाह्निक अनुष्ठान के अंतर्गत अनुष्ठान करवाया। पूज्यप्रवर ने तपस्या के प्रत्याख्यान करवाए। मुख्य नियोजिका जी ने कहा कि आचार्य भिक्षु का एक ग्रंथ हैशील की नव बाड़। जो व्यक्‍ति शील व्रत ग्रहण करना चाहता है, वो इन नव बाड़ों का अध्ययन करें। शील व्रत को पुष्ट बनाने के लिए सरस आहार का वर्जन करना होगा। ऊणोदरी तप दुष्कर तप है। मनोज्ञ पदार्थों को छोड़ना आसान नहीं होता है। चौदह नियम खाओ, पीयो और मोक्ष पाओ जैसे हैं। साध्वीवर्या जी ने पाँचवीं मंगलभावना-शक्‍ति संपन्‍नोऽम स्याम का विवेचन करते हुए कहा कि मैं शक्‍ति संपन्‍न बनूँ, इसके लिए आवश्यक है कि व्यक्‍ति इस भावना से अपने आपको भावित करें। शक्‍ति के बिना कुछ नहीं होता। हमारे भीतर अनंत शक्‍ति है, उसका जागरण करना होगा। शक्‍ति जागरण के पाँच प्रकारदीर्घ श्‍वास प्रेक्षा, क्रोध नियंत्रण। वाणी-संयम, आहार-संयम और कायोत्सर्ग को विस्तार से समझाया। टीपीएफ द्वारा आयोजित 5वीं नेशनल कॉन्फ्रेंस का आयोजन पूज्यप्रवर की सन्‍निधि में हुआ। टीपीएफ गौरव छत्तीसगढ़ के जज गौतमचंद चोरड़िया मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित थे। गौतमचंद चोरड़िया ने अपनी अभिव्यक्‍ति दी। पूज्यप्रवर ने आशीर्वचन फरमाया कि दो शब्द हैंअनुोत और प्रतिोत। अनुोत में चलना आसान होता है। प्रतिोत में चलना कठिन होता है। प्रवाह के विरुद्ध गति करना मुश्किल है। सुविधाओं के साथ चलना आसान है। सुविधाओं को छोड़कर चलना कुछ कठिन हो सकता है। आपकी कॉर्पोरेट कॉन्फ्रेंस का विषय हैं ब्ींससमदहम ल्वनतेमसण्ि आदमी सुविधा में ही रहता है, तो आगे कुछ विशेष पाना मुश्किल होता है। कठिनाइयों में जी सके वो अभ्यास हो जाए, जीवन में विशेष उपलब्धि हो सकती है।
कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।