केवल ज्ञान-केवल दर्शन संपन्‍न आत्मा अपने आपमें पूर्ण होती हैं : आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

केवल ज्ञान-केवल दर्शन संपन्‍न आत्मा अपने आपमें पूर्ण होती हैं : आचार्यश्री महाश्रमण

भीलवाड़ा, 5 अक्टूबर, 2021
आगम ज्ञान प्रदाता आचार्यश्री महाश्रमण जी ने मंगल अमृत देषणा देते हुए फरमाया कि ठाणं आगम में शास्त्रकार ने इस सृष्टि के संदर्भ में और ज्ञान के संदर्भ में एक बात बताई है। दस चीजें इस सृष्टि की बताई हैंधर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय, आकाशास्तिकाय, शरीर मुक्‍त जीव, परमाणु पुद्गल, शब्द, गंध, वायु, यह जिन होगा या नहीं और यह सभी दु:खों का अंत करेगा या नहीं। इनको देखना सामान्य अवबोध है, जानना विशेष अवबोध है। छद्मस्थ इन दस चीजों को सर्वभावेन् न जानता है, न देखता है।
प्रश्‍न है कि छद्मस्थ कौन होता है? छद्म यानी आवरण। दो कर्मों का आवरण के रूप में नाम हैज्ञानावरणीय और दर्शनावरणीय। ये दो कर्म आवरण डालने वाले हैं। जिसके इन दो कर्मों का उदय है, वह व्यक्‍ति छद्मस्थ है। यह एक कसौटी है। ये नहीं है, तो वह केवली है। छद्मस्थता और केवली ये ज्ञान के संदर्भ में हैं। ये दोनों विलोम शब्द हैं। छद्मस्थ और केवली है, उनकी मुख्य नियामकता ज्ञान है। संपूर्ण ज्ञान है, तो केवली और असंपूर्ण ज्ञान है, तो छद्मस्थ। अंतराय तो प्रासंगिक चीज में है। ज्ञानावरणीय और दर्शनावरणीय ये दोनों कर्म एक साथ ही जाते हैं, क्षय को प्राप्त होते हैं, आगे-पीछे नहीं। छद्मस्थ के भी चार प्रकार बना सकते हैं(1) वह जीव जिसके पास मति, श्रुत ज्ञान तो है, बाकी ज्ञान नहीं। (2) जिसके पास मति, श्रुत, अवधिज्ञान या विभंगमज्ञान है। (3) मति, श्रुत, मन:पर्यव ज्ञान है। (4) मति, श्रुत, अवधि व मन:पर्यव ज्ञान वाला। इस तरह छद्मस्थ के चार प्रकार हो गए।
शास्त्रकार ने कहा है कि ये दस बातें छद्मस्थ न देखता है, न जानता है। अवधि ज्ञानी भी धर्मास्तिकाय को संपूर्ण भावेन: नहीं जान सकता। अवधिज्ञान रूपी द्रव्य है, धर्मास्तिकाय अरूपी द्रव्य है। इसी तरह अधर्मास्तिकाय, आकाशास्तिकाय, शरीर मुक्‍त जीव को नहीं जान सकता। ये चार चीजें अमूर्त है। इनको चारों ही प्रकार के छद्मस्थ संपूर्ण भावेन नहीं जान सकते, न देख सकते।
परमाणु पुद्गल, शब्द, गंध, वायु ये चार चीजें रूपी हैं। रूपी तो अवधिज्ञान का विषय है, फिर भी छद्मस्थ इनको नहीं जान सकता।
यह जिन होगा या नहीं, यह भी प्रत्यक्ष ज्ञान है, वो केवल ज्ञानी को तो हो जाए, बाकी सबको प्रत्यक्ष-साक्षात्कार रूप में ज्ञान न भी हो। अवधि ज्ञानी जान भी पाए, न भी जान पाए, निश्‍चय में केवली जाने। सर्व भावेन: वह न जाए कि वह जिन होगा या नहीं। इसी से जुड़ा हुआ है कि वह सभी दु:खों का अंत करेगा या नहीं। जो केवलज्ञानी होता है, केवलज्ञान, केवलदर्शन संपन्‍न साधु है या जीव-आत्मा है, वह इन दसों चीजों को सर्वभावेन: जान लेती है। परमाणु-पुद्गल, शब्द, गंध और वायु ये मूर्त होने पर भी अद‍ृश्य है। मूर्त होना एक बात है, अद‍ृश्य होना एक बात है। शास्त्रकार ने यहाँ दस बातें अद‍ृश्य-अद‍ृश्य को लिया है, द‍ृश्य को नहीं लिया। अद‍ृश्य में कई मूर्त हैं, पर वो अद‍ृश्य हैं। वे चक्षु के द्वारा साक्षात् ज्ञात नहीं होती। इस सारे प्रकरण से हम ज्ञान की अनंत परिक्रमा का प्रबोधन, अनुभव कर सकते हैं कि अनंत ज्ञान होता है, वह कितना विराट है, यह कहना भी उचित है या नहीं, अपने आपमें अनंत है। केवल ज्ञान-केवल दर्शन संपूर्ण ज्ञान, संपूर्ण दर्शन होता है। यह एक बाजोट-चोकी और धूल के उदाहरण से समझाया।
सामान्य जो छद्मस्थ है, उनके मति, श्रुत ज्ञान तो संभव है, पर मति-श्रुत ज्ञान में भी तारतम्य काफी हो सकता है। ज्ञान-ज्ञान में अंतर हो सकता है। क्षयोपशम का तारतम्य रह सकता है। एक विशेष ज्ञानी है, एक सामान्य ज्ञानी है। सब में ज्ञान का वैदुष्य समान हो जाए तो बढ़िया बात है, पर अंतर हो सकता है। हमारा ज्ञान तत्त्वज्ञान आदि के रूप में निर्मल बने। वह प्रयास औचित्य के साथ जितना किया जा सके, हमें करने का प्रयास करना चाहिए। 
आज आश्‍विन कृष्णा चतुर्दशी है। यह मर्यादा-हाजरी वाचन का दिवस है। पूज्यप्रवर ने मर्यादा पत्र का वाचन करवाया। नवदीक्षित बारह साध्वियों से लेख पत्र का वाचन करवाया व 12-12 कल्याण की बख्शीष करवाई। सामुहिक लेख पत्र का वाचन हुआ। 7 तारीख से नवरात्रा का समय शुरू हो रहा है। नवाह्निक (अष्टाह्निक) जप का कार्यक्रम की जानकारी प्रदान करवाई। पूज्यप्रवर ने तपस्या के प्रत्याख्यान करवाए। मुनि प्रतीक कुमार जी ने अठाई का प्रत्याख्यान लिया। भाव निर्झर एक पुस्तक जो तनसुख बैद ने लिखी है, पूज्यप्रवर को अर्पित की। पूज्यप्रवर ने फरमाया कि शुद्ध भावों का निर्झर बहता रहे। तनसुखलाल बेद ने अपनी भावना अभिव्यक्‍त की। राहुल रांका, नव्या बोलिया ने अपनी भावना अभिव्यक्‍त की। मुख्य नियोजिका जी ने कहा कि जो जीव चारित्र संपन्‍न है, वह शैलेषी अवस्था को प्राप्त कर, सारे कर्मों का क्षय कर सिद्ध मुक्‍त बन जाता है। सारे दु:खों का अंत कर अपने साध्य को प्राप्त कर लेता हो, सम्यक् चारित्र मोक्ष का साधन बनता है। अज्ञान द्वारा किया जाने वाला तप मोक्ष तक नहीं पहुँचता। तप अध्यात्म साधना का अंग है। तपस्या से व्यक्‍ति अपने कर्म का क्षय कर सकता है। कार्यक्रम का संचालन करते हुए मुनि दिनेश कुमार जी ने बताया कि गुरु का विश्‍वास अर्जित करना बहुत बड़ी उपलब्धि होती है। नियम का सम्मान करो, विश्‍वास अपने आप बढ़ेगा।