वर्तमान भविष्य का निर्माता है : आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

वर्तमान भविष्य का निर्माता है : आचार्यश्री महाश्रमण

भीलवाड़ा, 6 अक्टूबर, 2021
आगमवेत्ता परमपूज्य आचार्यश्री महाश्रमण जी ने ठाणं आगम के दसवें स्थान के 133वें सूत्र की व्याख्या करते हुए फरमाया कि दस ऐसे कारण हैं जिनसे जीव कल्याणकारी कर्म का बंधन करते हैं, कल्याणकारी कर्म करते हैं। ऐसे अच्छे प्रयोग-व्यवहार हैं, जिनसे भविष्य में हित सन्‍निहित हो जाता है। अच्छा और शुभ होता है। ये दस चीजें हैं, उनमें पहली चीज हैअनिदानताभौतिक समृद्धि के लिए साधना का विनियम न करना। निदान यानी भौतिक समृद्धि के लिए साधना को बेचना होता है। निदान कराने, वापस प्रतिक्रमण-आलोचन हो जाए तब तो वो बात समाप्त हो जाती है। आलोचना नहीं तो वह निदान बना रहता है और फल भी देता है। शीलव्रत जो बहुत आध्यात्मिक फल देने वाले हैं, उनको खत्म कर जो सुख पाना चाहता है। तपस्वी है, पर धृति से दुर्बल है वो थोड़े के लिए बहुत खो देता है। 
दूसरी चीज हैद‍ृष्टि संपन्‍नतासम्यक्-द‍ृष्टि की आराधना। सम्यक् द‍ृष्टि संपन्‍नता है, तो भविष्य के लिए कल्याणकारी चीज है। तीसरी चीज हैयोग वाहिता-समाधिपूर्ण जीवन। आगम-स्वाध्याय के साथ उपधान तप करना। चौथी चीज हैशांतिक्षमणतासमर्थ होते हुए भी क्षमा करना। पाँचवीं चीज हैजितेंद्रियताइंद्रियों को जीत लेना, इंद्रिय-संयम रखना, विजितेन्द्रिय बन जाना। छठी चीज हैॠजुताछल-कपट नहीं करना, सरल रहना। सातवीं चीज हैअपार स्वस्थताज्ञान, दर्शन, चारित्र के आचार की शिथिलता न रखना। आठवाँ हैसुश्रामण्य-साधु साधुपन अच्छा रखे। निर्मल रखें, पाप श्रमण न बने। नवमीं चीज हैप्रवचन वत्सलता-आगम और शासन के प्रति प्रगाढ़ अनुराग। दशमी चीज हैप्रवचन-उद‍ृभावनता। आगम और शासन की प्रभावना। आध्यात्मिक रूप में शासन की प्रभावना करना। इस प्रकार के व्यवहारों से भविष्य के लिए एक कल्याणकारी स्थिति तैयार हो जाती है। वर्तमान भविष्य का निर्माता है। वर्तमान हमारा भाग्यविधाता है। वर्तमान हमारा जैसा होगा, उसके आधार पर भविष्य हमारा टिका हुआ होगा। इसलिए भावी कल्याण भावी भद्रता के लिए हमारा वर्तमान अच्छा होना चाहिए। वर्तमान अच्छे के संदर्भ में ये दस चीजें आगम में बताई गई है। ये हमारे लिए अनुसरणीय है। इन दस चीजों में कषाय-मंदता, कषायहीनता, क्षमा और ॠजुता की बात है। ऐसे आचरणों से भावी कल्याण की स्थिति निष्पन्‍न हो सकती है। आचार्य भिक्षु के जीवन को देखें, उनके आगम के प्रति, वीर वाणी के प्रति कितना निष्ठा का भाव रहा होगा। श्रीमद् जयाचार्य ने कितना आगम का मंथन किया होगा। ऐसे हमारे आचार्य हुए हैं, जिनका आगम के प्रति अनुराग रहा होगा।
परमपूज्य गुरुदेव तुलसी ने आगम संपादन का कार्य किया था। आचार्य महाप्रज्ञ जी ने भी आगम संपादन में कितना सहयोग किया होगा, पसीना बहाया होगा। हम इन दस चीजों को कितना जीवन के व्यवहार में प्रयुक्‍त कर सकें, ताकि हमारा भावी कल्याण हो। आचार्य महाप्रज्ञ जी ने जीवन के अंतिम वर्षों में कहा था कि मैं तो अगले जन्म की ओर ध्यान दे रहा हूँ। अवस्था आ जाए या शरीर की वैसी स्थिति हो जाए तो भावि भद्रता, भविष्य का कल्याण की ओर ध्यान देना चाहिए। जीवन की शैली को ढालने का प्रयास करें। व्यक्‍तिगत साधना में समय का नियोजन करें। सारी बात का सारांश है कि मेरा भावी कल्याण हो। गृहस्थ भी धार्मिक-द‍ृष्टि से सक्रिय बने। समय व्यर्थ न गँवाएँ। स्वाध्याय करें। भावों को शुद्ध बनाएँ। अणुव्रत भी वर्तमान को अच्छा बनाने की बात है। ये दस बातें भविष्य के कल्याण की द‍ृष्टि से अच्छी चीजें हैं। इनको जीवन में जितना उतारा जा सके, उससे हित प्राप्त हो सकता है। पूज्यप्रवर ने तपस्या के प्रत्याख्यान करवाए। मुख्य नियोजिका जी ने कहा कि तप मनुष्य के लिए कामधेनू, चिंतामणि-रत्न के समान है। जिसके पास ये दोनों होते हैं, उसे वह प्राप्त हो जाता है, जो वह चाहता है। तप ही मनुष्य का तिलक है, विभूषा है। तप से निर्जरा होने से, आत्मा की विशुद्धि होती है और अपने लक्ष्य को निकट बना लेता है। साध्वीवर्या जी ने चौथी मंगलभावना ‘धी संपन्‍नोऽम स्याम’ की व्याख्या करते हुए कहा कि जिस व्यक्‍ति को मंजिल-लक्ष्य पाना है, उसे धृति संपन्‍न, धैर्य संपन्‍न बनना होगा। हृीं, श्रीं, धी संपन्‍न बनने के लिए धृति संपन्‍न बनना होगा। ठहराव से सफलता मिलती है। तपस्वी संत मुनि पारसकुमार जी ने अपनी भावना अभिव्यक्‍त की। भीलवाड़ा तेरापंथ महिला मंडल ने कार्यक्रम की प्रस्तुति दी। कार्यक्रम का संचालन करते हुए बताया कि कर्मों के आधार पर जीव सुख या दु:ख का अनुभव करता है।