तेरापंथ समाज की धर्मसेना है अखिल भारतीय तेरापंथ युवक परिषद : आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

तेरापंथ समाज की धर्मसेना है अखिल भारतीय तेरापंथ युवक परिषद : आचार्यश्री महाश्रमण

भीलवाड़ा, 2 अक्टूबर, 2021
अहिंसा यात्रा के प्रणेता, अहिंसा के महान साधक आचार्यश्री महाश्रमण जी ने अमृत देषणा प्रदान करते हुए फरमाया कि हमारी दुनिया में हिंसा की बात भी कभी-कभी विशेषरूपेण सामने आ जाती है। सामान्य हिंसा तो चलती रहती है। छोटे-छोटे जीवों व स्थावर जीवों की हिंसा तो हो जाती है। युद्ध जैसी स्थिति और आतंकवाद से संदर्भित हिंसात्मक घटनाएँ कभी-कभी हो जाती हैं।
हिंसा से दु:ख पैदा होता है। अहिंसा से सुख व शांति मिलती है। दो मार्ग हैहिंसा का मार्ग और अहिंसा का मार्ग। हिंसा का मार्ग अशांति को प्राप्त कराने वाला है। अहिंसा का मार्ग शांति तक ले जाने वाला है। आज अणुव्रत उद्बोधन सप्ताह के अंतर्गत सातवाँ और अंतिम दिवस-अहिंसा दिवस है। गांधी जयंती से भी जुड़ा हुआ दिन है। गांधी जी और लालबहादुर शास्त्री से 2 अक्टूबर का दिन जुड़ा हुआ है। दुनिया में यदा-कदा ऐसे विशिष्ट व्यक्‍ति सामने आते हैं, जो कुछ पथदर्शन देने वाले होते हैं। अच्छे मार्ग पर चलने वाले, एक राह बनाने वाले होते हैं। राह पर चलने की राह भी वो लोगों में पैदा कर देते हैं। फिर कईयों में उत्साह भी पैदा कर देते हैं। ऐसे विशिष्ट व्यक्‍तियों का होना दुनिया के लिए मानो एक सौभाग्य की सी बात हो जाती है।
आदमी सेवा-कार्य करता है, तो वो वहाँ सेवा की भावना है, तो अलग बात है। वहाँ दिखावा आ जाता है, तो अलग बात हो जाती है। गांधी जी जब विदेश यात्रा पर जा रहे थे, तो बेघरजी स्वामी नाम के जैन संत से संपर्क हुआ। उन्होंने मोहनदास को तीन संकल्प दिएशराब नहीं पीना, मांसाहार नहीं करना और स्त्री संसर्ग में नहीं पड़ना। ये तीन वचन लेकर वे विदेश गए।
ये तीन नियम अणुव्रत जैसे नियम हैं। गांधी जी का वैशिष्ट्य आध्यात्मिकता से जुड़ा हुआ वैशिष्ट्य था। आज व्यापक रूप में अहिंसा दिवस है, जो अणुव्रत से भी जुड़ा हुआ है। हिंसा और अहिंसा ये दोनों दुनिया में चलने वाले तत्त्व हैं। हिंसा से संपूर्णतया मुक्‍त हो जाना सामान्य व्यक्‍ति के लिए असंभव सा है। कारण हर प्रक्रिया में जगह-जगह यह हिंसा का प्रकर जुड़ा रहता है।
हिंसा के तीन प्रकार हैंआरम्भजा हिंसा, प्रतिरक्षात्मिकी हिंसा और संकल्पजा हिंसा। क्रोध या लोभवश हिंसा करना संकल्पजा हिंसा है। यह हिंसा एक गृहस्थ के लिए भी परित्याज्य हैं। आरम्भजा और प्रतिरक्षात्मक हिंसा तो मान लें जरूरी है। अणुव्रत में तो निर-अपराध की हिंसा न करने की बात आती है। बिना मतलब हिंसा न करें। साधु तो अहिंसा के पुजारी होते हैं। परमपूज्य आचार्यश्री महाप्रज्ञ जी ने अहिंसा यात्रा की थी। अहिंसा चेतना का जागरण और नैतिक मूल्यों का विकास इस यात्रा का मुख्य उद्देश्य था। अहिंसा यात्रा के उस समय मुंबई भिंडी बाजार से प्रसंग को समझाया। वह यात्रा एक महत्त्वपूर्ण यात्रा हुई थी। मर्यादा महोत्सव भी था।
जाति-संप्रदाय ये चीजें भी हिंसा की निमित्त बन सकती हैं। परंतु अहिंसा की चेतना हो तो जाति-संप्रदाय हिंसा के कारण न भी बने। दुनिया में अनेक संप्रदाय और जातियाँ हैं। ये हिंसा के कारण न बने, यह अपेक्षा है। अहिंसा की बात बताने वाले लोग मिलते हैं कि लोगों को कुछ ज्ञान मिले। प्रेरणा मिले, जितना हो सके हिंसा से हटकर के अहिंसा की ओर आगे बढ़ें।
अहिंसा की चेतना, अहिंसक जीवनशैली, अहिंसा प्रशिक्षण ऐसे तत्त्व हैं जो हिंसा के अंधकार को दूर करने वाले और अहिंसा का दीप जलाने वाले होते हैं। आदमी में सहिष्णुता-अभय हो तो निमित्त भले हिंसा के मिल जाएँ पर वे निमित्त हिंसा को नहीं पैदा कर सकते, वे निमित्त अप्रभावी हो जाते हैं। आदमी अहिंसा के पथ पर चलने का प्रयास करता है।
गृहस्थ जीवन में संपूर्ण अहिंसा की बात मुश्किल है, तो संकल्पजा हिंसा को छोड़ने का प्रयास रहे। आदमी आदमी से मैत्री भाव रखे।
बात-बात में आदमी उग्रता में चला जाता है, तो हिंसा की भावना पैदा हो जाती है। कई बार बिना आधार के भी आदमी उग्र हो जाता है, यह एक द‍ृष्टांत से समझाया। बुद्धिमान और समझदार आदमी भी हिंसा में प्रवृत्त हो सकता है। आज का मीडिया भी कुछ हिंसा की ओर धकेलने वाला हो सकता है। मीडिया का उज्ज्वल पक्ष भी है। कितनी अच्छी जानकारियाँ मिल जाती हैं। फूल के साथ काँटे भी हो सकते हैं। बुराई से बचने का प्रयास रहे। बच्चों में अहिंसा के संस्कार पुष्ट हो, ऐसा प्रयास हो। ज्ञानशाला आदि इसके माध्यम हैं। कार्यक्रम संपन्‍नता के साथ अणुव्रत उद्बोधन सप्ताह को विदाई दी जा रही है। पूज्यप्रवर ने तपस्या के प्रत्याख्यान करवाए।
मुख्य नियोजिका जी ने कहा कि दुनिया में कोई भारी नहीं बनना चाहता। संसारी जीवों के अनंत-अनंत कर्म प्रदेश लगे हुए हैं, वो आत्मा को भारी बना रहे हैं। जब हमारा कर्मों का संचय खत्म हो जाएगा, आत्मा हल्की होकर मोक्ष को प्राप्त हो जाएगी।
अणुव्रत उद्बोधन सप्ताह के अंतर्गत अणुव्रत गीत का संगान हुआ। अणुव्रत समिति, भीलवाड़ा के संयोजक अभिषेक कोठारी ने अहिंसा के महत्त्व को बताया। श्रीडूंगरगढ़ के एक मुस्लिम परिवार मधुर बैंड से मोहम्मद शाकिल रमजान ने पूज्यप्रवर के दर्शन किए।
अभातेयुप का 55वें वार्षिक अधिवेशन का शुभारंभ
अभातेयुप के महामंत्री मनीष दफ्तरी ने 2019-21 के कार्यकाल का प्रतिवेदन प्रस्तुत किया। राष्ट्रीय अध्यक्ष संदीप कोठारी ने अपने सफलतम कार्यकाल के लिए पूज्यप्रवर के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित की। आवश्यकता आविष्कार की जननी है, इस सूत्र को साकार किया युवाशक्‍ति ने। अभातेयुप के आध्यात्मिक पर्यवेक्षक मुनि योगेश कुमार जी ने बताया कि पूज्यप्रवर के सान्‍निध्य में इस शतशाखी संस्था ने अभूतपूर्व विकास किया है। ये वह कार्यकर्ता है, जिनमें धैर्यता है, गंभीरता है, शौर्यता है, वीर्यता है। संघ और संघपति के प्रति आस्था में इनकी घनीभूतता है। कितने कार्य और योजनाओं को इन्होंने संपादित किए हैं। हर सेवा में ये समर्पित हैं। इनके उत्साह और जोश को सीमा में नहीं बाँधा जा सकता। गुरुदेव आपकी ऊर्जा शक्‍ति से ही ये सारा कार्य कर पाते हैं।
इस प्रसंग पर परम पावन युवा सम्राट ने आशीर्वचन कृपा करते हुए फरमाया कि आदमी के जीवन में चार चीजें अनर्थ की निमित्त बन सकती हैं। पहली चीज हैयौवन-जवानी, दूसरीधन-संपत्ति, तीसरीप्रभुत्व-सत्ता, और चौथी बात हैअविवेकता।
यौवन, पैसा या सत्ता के साथ अविवेक जुड़ जाए तो अनर्थकारी बन सकते हैं। वरना जवानी, पैसे और सत्ता की उपयोगिता हो सकती है। तेयुप के युवकों में तारुण्य होता है। युवाशक्‍ति को ऐसा माध्यम मिल गया है, जो संस्था युवाओं की है। युवा व्यक्‍ति जिसके पास शक्‍ति भी सामान्यतया होती है, शारीरिक बल होता है। जिससे वह अच्छा कार्य भी कर सकता है।
अभातेयुप को गृहस्थों के संदर्भ में देखें तो तेरापंथ समाज की धर्म-सेना है। सेवा में काम आती है। कार्य के प्रति लगन भी है, निष्ठा भी है। अच्छा उपयोग इस सेना का किया जा सकता है। कार्यकाल संपन्‍न होता है, तो एक टीम का जाना व नई टीम का आना होता है। वर्तमान टीम ने काम किया है। वर्तमान टीम के अध्यक्ष को कल्याण परिषद-संयोजक का दायित्व भी दिया गया। कोरोना काल में संयोजक संदीप को ज्यादा दायित्व मिला। आदमी को व्यवस्थानुसार निवृत्त भी होना होता है। एक चीज से निवृत्त बने तो और किसी से प्रवृत्त बन जाएँ। नई टीम भी खूब अच्छा काम करे। वर्तमान टीम ने जो काम किया, तटस्थ बनकर संतोष का अनुभव करें। संतोष और आगे का संकल्प दोनों योग हैं। टीम से काम होता है। अध्यक्ष-मंत्री अकेला कितना काम करें। युवक परिषद के सदस्यों में खूब आध्यात्मिक उत्साह भावना रहे, अच्छा काम आगे बढ़ता रहे। अभातेयुप की टीम ने जैन संस्कार विधि की पुस्तक श्रीचरणों में अर्पित की। संजय जैन ने अपनी भावना रखी। अपने पिता स्वर्गीय महेंद्र जैन की अंतिम इच्छा के अनुसार आचार्यश्री महापज्ञ जी की कृति को पूज्यप्रवर को अर्पित किया। कार्यक्रम का संचालन करते हुए मुनि दिनेश कुमार जी ने बताया कि अहिंसा सबके लिए कल्याणकारी होती है।