धर्मसंघ में मुमुक्षु तैयार करने में योगभूत बने अभातेयुप : आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

धर्मसंघ में मुमुक्षु तैयार करने में योगभूत बने अभातेयुप : आचार्यश्री महाश्रमण

भीलवाड़ा, 4 अक्टूबर, 2021
महातपस्वी, युवामनीषी आचार्यश्री महाश्रमण जी के पावन सान्‍निध्य में अभातेयुप के 21वें राष्ट्रीय अध्यक्ष का शपथ ग्रहण समारोह आयोजित हुआ। अखिल भारतीय तेरापंथ युवक परिषद के 21वें नवनिर्वाचित अध्यक्ष का शपथ ग्रहण समारोह अभातेयुप के नवनिर्वाचित अध्यक्ष पंकज डागा, गुलाबबाग अपने युवा साथियों के साथ पूज्यप्रवर की सन्‍निधि में पहुँचे। निवर्तमान अध्यक्ष संदीप कोठारी ने नवनिर्वाचित अध्यक्ष पंकज डागा को पद व गोपनीयता की शपथ दिलाई। नवनिर्वाचित अध्यक्ष ने अपनी कार्यकारिणी की घोषणा की एवं उन्हें पद की शपथ दिलवाई। शपथ समारोह से पहले पूज्यप्रवर ने मंगलपाठ की कृपा करवाई।
निवर्तमान अध्यक्ष ने नवमनोनीत अध्यक्ष को शुभकामनाएँ प्रदान करते हुए विकास की मंगलकामना की। नवमनोनीत अध्यक्ष ने अपनी भावना अभिव्यक्‍त करते हुए षष्टीपूर्ति पर आध्यात्मिक तप करवाने की भावना व्यक्‍त की।
पूज्यप्रवर ने मंगल आशीवर्चन की कृपा करते हुए फरमाया कि अभातेयुप का दायित्व हस्तांतरण का प्रसंग है। एक टीम कार्य करती है, तो दायित्व से मुक्‍ति ले तब आत्म-तुष्टि हो जाए कि हमने अपनी ओर से अच्छा कार्य किया है। वस्तुत: यह संतुष्टि है और दूसरों को भी संतुष्टि हो कि अच्छा काम किया है। यह उस सेवा-कार्य का बड़ा पुरस्कार हो जाता है।
एक टीम ने अपना कार्यकाल पूरा किया है और दूसरी टीम ने दायित्व स्वीकार करने की प्रक्रिया में आगे बढ़ी है। आने वाली टीम का भी संकल्प-भावना हो कि हमें अच्छा कार्य करना है और पवित्र आध्यात्मिक, धार्मिक सेवा में अपना योगदान देना है। संदीप कोठारी और उसकी टीम गत कार्यकाल में दायित्व संभाल रही थी। संदीप को कल्याण परिषद के संयोजक का दायित्व भी दिया गया था।
कार्यकाल पूरा हुआ है। आगे जैसा भी मौका मिले, कार्य तो किसी रूप में हो, उसमें अपना योगदान दिया जा सके। अपनी व दूसरों की आत्मा के कल्याण का कार्य किया जा सके वो लक्ष्य रहना चाहिए।
पंकज डागा की नई टीम आई है। नई टीम भी खूब आध्यात्मिक उत्साह के साथ अच्छा कार्य करने का, सेवा करने का प्रयास करती रहे। एक आयाम जो कठिन भी है, वह है कि मुमुक्षुओं को तैयार करने में योगदान दें। आपके परिवार संबंधी लोगों या समाज में जो छोटे भाई-बाईयाँ हों उनमें मुमुक्षुत्व का भाव बढ़ सके या अपने परिवार में कोई तैयार हो तो उनके बाधा डालने का प्रयास न हो। मुमुक्षु संख्या बढ़ाने में अभातेयुप जितना संभव हो सके, उतना योगदान देने का प्रयास करें।
अभातेयुप के आध्यात्मिक पर्यवेक्षक मुनि योगेश कुमार हैं, जो अपना योगदान पर्यवेक्षक के रूप में वर्षों से इस कार्य से जुड़े हुए हैं। अभातेयुप को आगे बढ़ाने व आध्यात्मिक सहयोग में अपना अच्छा योगदान देते रहें, खूब अच्छा कार्य चले। नई टीम को मंगलपाठ सुनवाया। मुनि नयकुमार जी ने अपनी भावना अभिव्यक्‍त करते हुए बताया कि पूज्यप्रवर का आशीर्वाद अभातेयुप को मिलता रहा है और आगे भी मिलता रहे। अभातेयुप की जो ड्रेस है, वो मुमुक्षु जैसी ही है। गुरुदेव के 50वें दीक्षा अमृत महोत्सव का दायित्व गुरुदेव अभातेयुप को फरमाएँ। युवा दिवस है, इसे जितनी ऊँचाई अभातेयुप प्रदान कर सके, शायद और नहीं कर पाएँ। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया। तीर्थंकर महावीर के प्रतिनिधि, आचार्यश्री महाश्रमण जी ने मंगल देषणा प्रदान करते हुए फरमाया कि अहिंसा का संदेश हमें धार्मिक साहित्य में मिलता है। जैन आगम में कहा गया है कि कोई भी प्राणी हंतव्य नहीं है। यह अहिंसा धर्म है, शाश्‍वत धर्म है। दुनिया में अनेक धर्म-संप्रदाय हैं, परंतु कौन-सा धर्म-संप्रदाय होगा जो अहिंसा को नहीं मानता है। अहिंसा तो मौलिक तत्त्वों में एक तत्त्व है। जो गृहस्थ है, जो व्यापार आदि करने वाले होते हैं, उनके लिए पूर्णतया अहिंसा का पालन और भी कठिन हो जाता है। परंतु गार्हस्थ्य में रहते हुए भी कई अंशों में अहिंसा का पालन किया जा सकता है। साधु के लिए तो अहिंसा का पालन बहुत ज्यादा आवश्यक है। हम लोग जैन धर्म से जुड़े हुए हैं। आचार्यप्रवर ने उपस्थित दाऊदी बोहरा मुस्लिम समाज को जैन धर्म एवं तेरापंथ धर्म के बारे में जानकारी दी एवं कहा कि हम लोगों के पाँच महाव्रत हैं। जिनका हम जीवन-भर सजगता से पालन करते हैं। पाँचों महाव्रत व रात्रि भोजन विरमण को विस्तार से समझाते हुए अहिंसा पालन का महत्त्व समझाया। कोई दोष लग जाए तो प्रायश्‍चित लेते हैं। आचार्यप्रवर ने साधुचर्या की जानकारी देते हुए फरमाया कि साधु न तो स्वयं पकाते हैं, न दूसरों से पकवाते हैं। वे तो भोजन की पूर्ति के लिए गृहस्थों के घर में बने भोजन में से थोड़ा-थोड़ा भिक्षा के रूप में ग्रहण करते हैं। साधु के पास न एक पैसा न कोई जमीन या भवन होता है। जहाँ जगह मिले रह जाते हैं। हमारे धर्मसंघ में सात सौ से भी ज्यादा साधु-साध्वियाँ हैं। साध्वियों से कुछ अलग एक श्रेणी-समण श्रेणी है, जो विदेश भी जाती है।  हम लोग अहिंसा यात्रा के नाम से यात्रा कर रहे हैं। अहिंसा यात्रा आचार्य महाप्रज्ञ जी ने भी की थी। वे गुजरात में अहमदाबाद-सूरत तथा मुंबई भी पधारे थे। अहिंसा यात्रा के तीन उद्देश्यों को समझाया। आचार्य महाप्रज्ञ जी मुंबई में शेखी महल जो सयदना जी का मकान है, वहाँ भी पधारे थे। गुरुदेव से काफी लंबा वार्तालाप उनसे हुआ था। तब से दाउदी बोहरा समाज के साथ तेरापंथ का कुछ निकटता का संपर्क हो गया। बाद में बोहरा समाज के लोगों से समय-समय पर मिलना होता। यदा-कदा आप जैसे गृहस्थ लोगों से मिलना होता रहता है। सद्भावना और मैत्री भाव रखो, हिंसा में मत जाओ। विभिन्‍न धर्म-जातियाँ और भाषाएँ हैं, पर यह भिन्‍नता हिंसा का कारण न बने। भिन्‍नता हो सकती है, फिर भी मैत्री व सौहार्द का भाव रखा जाए। अणुव्रत में भी यही बात आती हैसांप्रदायिक सहिष्णुता।
आचार्य महाप्रज्ञ जी 2002 में गुजरात अहमदाबाद पधारे थे। उस समय कुछ हिंसा का माहौल था। उन्होंने उस समय दोनों धर्म के लोगों से कहा था कि हिंसा में मत जाओ। शांति में रहते हैं, तो विकास होता है। अशांति से नुकसान होता है। उस समय वहाँ जगन्‍नाथ यात्रा का प्रसंग भी था। उन्होंने कहा था कि किसी के कार्य में बाधा नहीं डालनी चाहिए। सहयोग करो, न करो अलग बात है। बाद में वहाँ अच्छा माहौल बन गया था। जीवन में अहिंसा-मैत्री का भाव रहे। कार्य में ईमानदारी रहे। नशे से आदमी बचे ताकि यह जीवन भी अच्छा और आगे भी अच्छा होने की संभावना है। अणुव्रत के छोटे-छोटे नियम हैं, जो आप लोग गृहस्थ हैं, आपके जीवन में रहें तो आपकी आत्मा अच्छी, जीवन अच्छा व समाज में शांति रह सकती है। इतने आप बोहरा समाज के लोग आए हैं, आपसे मिलकर अच्छा लगा। जीवन में शांति रहे, पवित्रता बनी रहे। दाऊदी बोहरा समाज के उदयपुर के प्रतिनिधि अली असगर साहब जिन्हें आमिल साहब कहते हैं, इनसे कोई पूछता है कि आपका मजहब क्या है? तो ये कहते हैं कि मेरा मजहब दो हथेलियाँ हैं, जो जुड़े तो पूजा और खूले दुआ बन जाती है। अली असगर साहब ने कहा कि दाऊदी बोहरा समाज के 53वें गुरु पावन पवित्र सयदना साहब ने आमंत्रित किया है, विशेष रूप से आप सभी को शुभेच्छा की भेंट फरमाने को हमें निर्देश फरमाया है।
मुस्लिम समाज की पवित्र पुस्तक कुरान में अल्ला-ताला फरमाते हैं कि तुम सब नेकी और धर्म परायणता से सहयोग करो। भारत में अनेक भाषाएँ व परिवेश वाले लोग रहते हैं। बहुरंगी कपड़े में भी ये देश एक रंगा दिखता है। विभिन्‍न आस्थाओं के बीच सभी धर्म समान दिखते हैं। ये समानता सम्मान से उभरी हुई भावना है। व्यवस्था समिति के अध्यक्ष प्रकाश सुतरिया एवं अणुव्रत समिति से लक्ष्मी ने अली असगर साहब व अन्य मेहमानों का स्वागत किया। प्रतीक चि व साहित्य से सभी का सम्मान किया गया। मुनि मनन कुमार जी ने अपनी भावना अभिव्यक्‍त की। पूज्यप्रवर ने तपस्या के प्रत्याख्यान एवं सम्यक्त्व दीक्षा ग्रहण करवाई। जैन विश्‍व भारती द्वारा प्रकाशित शोध प्रबंधनबाल दीक्षा एक अध्ययनशोधार्थी मुनि विनोद कुमार ‘विवेक’ पूज्यप्रवर के श्रीचरणों में अर्पित की गई। पूज्यप्रवर ने फरमाया कि हमारे जैन शासन में बाल दीक्षाएँ भी होती रही हैं। ये बाल दीक्षा के संदर्भ में जो पुस्तक आई हैं, इसमें न्यायालय संबंधी व विधि-विधान संबंधी जानकारियाँ हैं जो पढ़ने से आशा है, बाल दीक्षा के संदर्भ में जानकारियाँ प्राप्त हो सकेंगी। डॉ0 मुनि विनोद कुमार जी अपने ज्ञान का, सेवा का अच्छा यथासंभव विकास करते रहें। मंगलभावना। जैविभा जो ऐसे ज्ञान के कार्यों में अपना योगदान देती रहती है। जैविभा भी धार्मिक, आध्यात्मिक कार्य-विकास करती रहे। मुख्य नियोजिका जी ने चारित्र के पाँचों प्रकारों की विवेचना करते हुए कहा कि जिस व्यक्‍ति को चारित्र प्राप्त हो जाता है, वो वीतरागता की ओर अग्रसर हो जाता है। ज्ञान और आचरण के द्वारा व्यक्‍ति मोक्ष को प्राप्त कर सकता है। ज्ञान को बोध प्राप्त होता है और आचरण से वह आत्मरमण करने लग जाता है। साधक को सतत प्रयास करना चाहिए कि मैं शीघ्रातिशीघ्र कषायमुक्‍त बनूँ।