डालगणी समवसरण में दीक्षा समारोह का भव्य आयोजन

गुरुवाणी/ केन्द्र

डालगणी समवसरण में दीक्षा समारोह का भव्य आयोजन

उज्जैन, 28 मई, 2021
भैक्षवगण के एकादशम अधिशास्ता आचार्यश्री महाश्रमण जी की सन्‍निधि में आयोजित मुनि दीक्षा समारोह एवं श्रेणी आरोहण। समण सिद्धप्रज्ञा जी का श्रेणी आरोहण एवं मुमुक्षु अनुप्रेक्षा कुंकु चौपड़ा की साध्वी दीक्षा। पूज्यप्रवर द्वारा नमस्कार महामंत्र के मंगल उच्चारण के साथ मंगल कार्यक्रम का प्रारंभ हुआ।
डालगणी समवसरण में संयम प्रदाता, संयम के सुमेरू आचार्यश्री महाश्रमण जी ने भगवान महावीर के स्मरण के साथ पावन प्रेरणा प्रदान करते हुए फरमाया कि आज जैनी नगरी उज्जैन में जैन श्‍वेतांबर तेरापंथ धर्मसंघ का मुनि-साध्वी दीक्षा समारोह हो रहा है।
लिखित और मौखिक आज्ञा प्राप्त करने के पश्‍चात नमोत्थुणं समणस्सं भगवओ महावीरस्स के उच्चारण के साथ दोनों को दीक्षा प्रदान करने की प्रक्रिया शुरू की। भगवान महावीर एवं आचार्य भिक्षु का सश्रद्धा का स्मरण करते हुए पूर्वाचार्यों का स्मरण करते हुए साध्वीप्रमुखाजी का अभिवादन किया। मंगल स्मरण के साथ सामायिक पाठ से तीन करण तीन योग से आजीवन सामायिक चारित्र ग्रहण करवाया। सर्व सावद्य योग का तीन करण-तीन योग से त्याग करवाया। मुनि-साध्वी दीक्षा प्रदान करवाई।
पूज्यप्रवर ने अतीत की आलोचना आर्षवाणी और स्तुति के साथ दोनों को करवाई। एक लोगस्स का ध्यान करवाया। परम पावन ने मुनि सिद्धप्रज्ञ जी का केश लुंचन संस्कार किया। साध्वीप्रमुखाश्री जी ने साध्वी अनुप्रेक्षा का केश-लुंचन संस्कार किया। पूज्यप्रवर एवं साध्वीप्रमुखाश्री जी ने रजोहरण आर्षवाणी के साथ प्रदान करवाया।
मुनि सिद्धप्रज्ञ जी को प्रेरणा प्रदान करते हुए फरमाया कि इतने दिनों तुमने समण रूप में सेवा दी है। संतों को सहयोग प्रदान करवाया है। कितने वर्षों से अकेले भी रहे हो। बहुत अच्छी सेवा की भावना भी रही है। प्रेक्षाध्यान, जीवन-विज्ञान, देश-विदेश की यात्राएँ आदि का भी वर्षों तक काम कर अपनी सेवा दी है। समण श्रेणी में अखंड रूप से रहे हो। अब नया प्रस्थान हो गया है। मुनि रूप में भी अपनी खूब अच्छी साधना, सेवा करते रहो। स्वास्थ्य का भी ध्यान रखना। खूब अच्छे वर्द्धमान बने रहो। खूब अच्छे धर्मशासन की सेवा करते रहो। उज्जैन जो डालगणी से जुड़ा हुआ है, उसका भी नाम रोशन करते रहो।
हमारे सप्तमाचार्य पूज्य डालगणी जिन्हें मैं यदा-कदा तेजस्वी आचार्य कहता रहता हूँ। डालगणी हमारे विलक्षण आचार्य थे।
समण सिद्धप्रज्ञ का नाम अब मुनि सिद्धप्रज्ञ, मुमुक्षु अनुप्रेक्षा को साध्वी अवन्तिकप्रभा नाम दिया। अवन्तिक यानी उज्जैन।
अब तुम साधु-साध्वी बन गए हो। साधु जीवन के अनुरूप अब आचरण रहे। कैसे चलना-संयम से चलना। बोलना, बैठना, खाना। सारी प्रवृत्तियाँ संयम से हो। समता से सहन करना। संयमपूर्वक साधना करते रहो।

साध्वीप्रमुखाश्री जी ने रामकृष्ण परमहंस और स्वामी विवेकानंद के जीवन प्रसंग को समझाते हुए कहा कि दीक्षा अपने आपको पहचानने, जानने और पाने की प्रक्रिया है। भारतीय संस्कृति में दीक्षा का बहुत बड़ा महत्त्व है। दीक्षा की भावना के लिए सबसे पहले वैराग्य होना चाहिए। जिस व्यक्‍ति को संसार का बोध हो जाता है, जन्म-मरण की प्रक्रिया क्या है, जीवन में कितने दु:ख आ सकते हैं, संसार से विरक्‍ति होने पर मोक्ष मार्ग से अनुराग हो जाता है। सत्य का साक्षात्कार करने का संकल्प जगता है, उसे वैराग्य हो जाता है।
दीक्षा एक प्रकार की क्रांति है। इससे बाह्य और आंतरिक रूपांतरण हो जाता है। जब व्रतों का कवच पहन लिया जाता है, फिर उसे कहीं भय नहीं रहता। जो व्यक्‍ति आत्मा के साथ युद्ध करता है, वह स्वयं सुखी व सुरक्षित हो जाता है और वह दूसरों को भी सुरक्षित रखने का आश्‍वासन देता है। जैन श्‍वेतांबर तेरापंथ की दीक्षा तो विलक्षण होती है। तेरापंथ में संख्या का नहीं गुणवत्ता का महत्त्व है। यहाँ शिक्षा-परीक्षा के बाद दीक्षा होती है।
मुख्य मुनिप्रवर ने कहा कि यह हमारे धर्मसंघ का सौभाग्य है कि हमें डालगणी जैसे आचार्य मिले। उज्जैयनी नगरी वास्तव में भाग्यशाली है।
मुख्यनियोजिका जी ने कहा कि डालगणी जी विलक्षण संत थे। डालगणी ने जो यात्राएँ की थीं वो बहुत प्रभावक यात्राएँ रही थीं। मुनि जीवन में तो उन्हें कच्छपूजजी के नाम से जाना जाता था।
साध्वीवर्या जी ने कहा कि डालगणी मुनि अवस्था में भी निर्लिप्त-अनासक्‍त रहने वाले थे। मुनि जीवन में डालगणी ने यात्राओं में अच्छा प्रभाव छोड़ा था। मुझे सात्त्विक प्रसन्‍नता हो रही है कि मुझे साध्वी अवस्था में भी उज्जैन आने का सौभाग्य मिला है।
दीक्षा समारोह के प्रारंभ में मुमुक्षु मनीषा चौपड़ा ने समण सिद्धप्रज्ञ जी एवं मुमुक्षु अनुप्रेक्षा चौपड़ा का परिचय दिया। मुमुक्षु अनुप्रेक्षा के पिता डूंगरमलजी एवं माताश्री जशोदा चौपड़ा ने आज्ञा-पत्र पूज्यप्रवर के चरणों में समर्पित किया।
समण सिद्धप्रज्ञ जी ने अपनी भावना व्यक्‍त करते हुए कहा कि 40 वर्ष बाद आज भावना सफल हो रही है। उज्जैन में तेरापंथ धर्मसंघ के 8 आचार्यों का पदार्पण हुआ है, पर दीक्षा प्रथम बार आचार्यश्री महाश्रमण जी द्वारा हो रही है। समणजी ने अपने जीवन के 35 वर्ष समण श्रेणी के अनुभव प्रस्तुत किए। मुमुक्षु अनुप्रेक्षा ने अपने भावों की अभिव्यक्‍ति देते हुए कहा कि आपश्री के चरणों में अपनी चोटी समर्पित करने जा रही हूँ। जब तक मैं अपनी लक्षित मंजिल को प्राप्त न कर लूँ आप मेरी चोटी पकड़े रहना।
पूज्यप्रवर के स्वागत में उत्कर्ष आंचलिया, अभय बोरदिया, कन्या मंडल, खटपटिया परिवार, तेयुप अध्यक्ष मधुर आच्छा, तेरापंथ महिला मंडल, आज्ञा पिपाड़ा, सोहनलाल आच्छा, सुनीता सेठिया, अनीता संजय मेहता, मोहित मेहता, शुभम् बोरदिया ने अपनी भावना अभिव्यक्‍त की।
पूज्यप्रवर ने उज्जैनवासियों को सम्यक् दीक्षा ग्रहण करवाई।