गुरु के प्रति श्रद्धा हो तो सब कार्य सिद्ध हो जाते हैं : आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

गुरु के प्रति श्रद्धा हो तो सब कार्य सिद्ध हो जाते हैं : आचार्यश्री महाश्रमण

रतलाम, 22 जून, 2021

अहिंसा यात्रा प्रणेता आचार्यश्री महाश्रमण जी का त्रिदिवसीय रतलाम प्रवास हेतु आगमन हुआ। महामहिम आचार्यप्रवर एक चुनौती भरी यात्रा संपन्‍न करके पधारे हैं। आचार्यप्रवर महान संकल्प के धनी हैं।
परम पावन ने मंगल प्रेरणा प्रदान करते हुए फरमाया कि आदमी का जीवन शरीर और आत्मा का योग है। धर्म का और आस्तिक दर्शन का यह सिद्धांत है कि शरीर अलग है, आत्मा अलग है। आत्मा और शरीर एक नहीं है। मोटा-मोटी धर्म की पृष्ठभूमि यही है।
आत्मा अलग है, शरीर अलग है तो पुनर्जन्म की बात होती है। आत्मा और शरीर एक ही है तो फिर पुनर्जन्म संभव नहीं लगता। नास्तिक विचारधारा का मंतव्य है कि शरीर और आत्मा अलग-अलग नहीं है। भगवान पार्श्‍व की परपरा के महान ॠषि कुमारश्रमण केशी के समय की बात है।
मुनि कुमार श्रमण केशी और राजा परदेशी के संवाद को बताते हुए शरीर अलग है, आत्मा अलग है कि संक्षिप्त में जानकारी दी। लोह बणिक के प्रसंग को समझाया। आग्रह में आकर आदमी बढ़िया चीज को छोड़ देता है।
धर्म का मूल आधार हैशरीर अलग है, आत्मा अलग है। ये है तो पूर्वजन्म और पुनर्जन्म है। आत्मा स्थायी है। मरने के बाद शरीर को तो जला दिया जाता है। आत्मा कहीं और जन्म ले लेती है या मोक्ष में चली जाती है। यह सिद्धांत आस्तिक दर्शन और जैन दर्शन का है।
अनंत काल पहले आत्मा थी और अनंत काल बाद भी आत्मा रहेगी और आज भी है। यह आत्मवाद का सिद्धांत है। एक जन्म के बाद दूसरा पुनर्जन्म होता है। हमारी आत्मा ने अनंत जन्म-मरण कर लिए। 84 लाख जीव योनी में नरक-तिर्यंच, पशु-पक्षी आदि हैं। मनुष्य और देव भी है। इन अलग-अलग योनियों में कितना दु:ख-कष्ट होता है।
कर्मों के अनुसार जीव को फल भोगना पड़ता है। जन्म, मृत्यु, बीमारी और बुढ़ापा दु:ख हैं। इन दु:खों से छुटकारा पाने के लिए धर्म की साधना की अपेक्षा है ताकि हमारी आत्मा ऐसे परम स्थान को प्राप्त हो जाए, फिर न कभी जन्म न कभी दु:ख।
आत्मा अलग, शरीर अलग है, ये बात दिमाग में स्पष्ट हो जाए तो धर्म की पृष्ठभूमि हो जाती है। इन धर्म के सिद्धांतों की मूल बातों को बताने वाले सर्वज्ञ, अर्हत् तीर्थंकर होते हैं, जो राग-द्वेष मुक्‍त हैं। उनमें एक नाम हैभगवान महावीर। उन्होंने साधना कर केवल ज्ञान, केवल दर्शन, सर्वज्ञता प्राप्त की।
उन्होंने सब कुछ जान लिया फिर दुनिया को बताया कि सिद्धांत क्या है? इन सिद्धांतों के अधिकृत प्रवक्‍ता तीर्थंकर होते हैं। वर्तमान में हमारी दुनिया में कोई तीर्थंकर नहीं है। तीर्थंकर साधक के लिए देव रूप में आराध्य होते हैं। ये वीतराग राग-द्वेष और जन्म-मरण से मुक्‍त होते हैं। जिसमें राग-द्वेष नहीं है, वो कभी झूठ नहीं बोल सकता।
इन देवों की अनुपस्थिति में गुरु होते हैं। जो शुद्ध साधु हैं, वह गुरु होता है। पाँच महाव्रत का पालन वाले गुरु आचार्य होते हैं। गुरु पथ दर्शन देने वाले होते हैं। उनके प्रति श्रद्धा हो तो सब कार्य सिद्ध हो जाते हैं। एक द‍ृष्टांत से समझाया कि गुरु के देखते गलत काम नहीं करना चाहिए। गुरु के प्रति श्रद्धा है तो गुरु तो हृदय में विराजमान होते हैं। वे हर समय देखते रहते हैं। ऐसी श्रद्धा जाग जाए।
कई बार गुरु का मौन भी व्याख्यान है। एक सापेक्ष सूत्र हैजो वाणी ने कहा वो बह गया, जो मौन ने कहा वह रह गया। गुरु के प्रति सम्मान का भाव है, सब बातें अपने आप ठीक हो सकती हैं। गुरु जो त्यागी होते हैं। जीवन में संयम हो, महाव्रती हो। गुरु मिले तो ऐसे भागी, कंचन-कामिनी के त्यागी।
देव हमारे अरहंत हैं, गुरु हमारे शुद्ध त्यागी हैं। धर्म हमारा जैन धर्म है। गाय खूँटे से बँधी रही है तो सुरक्षित रह सकती है। धर्म-संप्रदाय एक खूँटा है। अच्छा जो धर्म लगे स्वीकार कर लें।
जीवन में सही समझ के साथ देव, गुरु, धर्म को स्वीकार किया जाता है, जो यथार्थ लगे। एक परंपरागत होता है। एक समझ के साथ स्वीकार किया जाता है, जैसे राजा परदेशी ने स्वीकार किया। सभी धर्मों में बहुधा अच्छी बातें मिल सकती हैं। कुछ-कुछ सिद्धांतों का अंतर हो सकता है।
साधु त्यागी हो। साधु के पास रुपया-पैसा कुछ भी नहीं होना चाहिए। साधु को न वोट चाहिए न नोट चाहिए। साधु को तो खोट चाहिए। अपनी कमजोरियाँ साधु के पास छोड़ दो।
सांसद गुमानसिंह कई दिनों से हमारे साथ चल रहे हैं। आप चिंतनशील व्यक्‍ति हैं। धर्म को चिंतन-समझ के साथ स्वीकार करना, वो एक अच्छी बात हो जाी है। देव-गुरु, धर्म के प्रति श्रद्धा रहे। जीवन आदमी का अच्छा रहे। जीवन में सदाचार रहे। जितना आत्मा का उत्थान हो, हमारा राग-द्वेष कम हो। आत्मा कभी साधना करके जन्म-मरण की परंपरा से मुक्‍ति प्राप्त कर लें।
हर आदमी साधु नहीं बन सकता पर गृहस्थ अवस्था में रहकर जो धर्म का पालन किया जा सके, अणुव्रत आदि छोटे-छोटे नियम हैं। उनका पालन करते भी आदमी उस दिशा में आगे बढ़ सकता है।
आज रतलाम आए हैं। 17 वर्ष पहले हम लोग रतलाम में थे। लोगों में धार्मिक उत्साह बना रहे। खूब अच्छा मंगलमय काम हो। संतों से भी मिलना हो गया है। साध्वी प्रबलयशा जी से मिलना हो गया है। इनका यहाँ चातुर्मास घोषित है।
सांसद गुमानसिंह जो कई दिनों से गुरुदेव के साथ में ही चल रहे थे। आज उन्होंने सपत्नी गुरुदेव से तेरापंथ की सम्यक् दीक्षा स्वीकार की है। गुरुदेव ने भी प्रवचन के माध्यम से गुमानसिंह को जैन धर्म तेरापंथ के विषय में जानकारियाँ दी।
सांसद गुमानसिंह ने अपनी भावना पूज्यप्रवर के स्वागत में अभिव्यक्‍त की। जो दूसरों का कल्याण करे, ऐसे गुण मुझे गुरुदेव में मिले। आज हिंसा के दौर में अहिंसा यात्रा की अपेक्षा है। मुझे ऐसा लगा कि गुरुदेव के इस मिशन में सबको जुड़ना चाहिए। ये मानव कल्याण का मार्ग है। जीवन विज्ञान के माध्यम से भारत को विश्‍व-गुरु बना सकते हैं। जीवन-विज्ञान नई शिक्षा नीति का हिस्सा बने।
पूज्यप्रवर के स्वागत व अभिवंदना में तेरापंथ महिला मंडल गीत से, तेरापंथ सभा अध्यक्ष अशोक दक, टीपीएफ अध्यक्ष अंकित बरमेचा, तेयुप गीत से, एडवोकेट रवि जैन (रतलाम का प्रथम तेरापंथ परिवार), मालवा सभा के अध्यक्ष पूनमचंद मरलेचा, ज्ञानशाला ज्ञानार्थी प्रस्तुति ने अपने भावों की अभिव्यक्‍ति दी।
कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।