मोक्ष की साधना के लिए सम्यक्त्व युक्‍त चारित्र आवश्यक : आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

मोक्ष की साधना के लिए सम्यक्त्व युक्‍त चारित्र आवश्यक : आचार्यश्री महाश्रमण

भीलवाड़ा, 29 सितंबर, 2021
संयम के महासूर्य आचार्यश्री महाश्रमण जी ने मंगल प्रेरणा प्रदान करते हुए फरमाया कि ठाणं आगम के दसवें अध्ययन के 104वें सूत्र में सराग सम्यक्दर्शन के दस प्रकार बताए गए हैं। सम्यग्-दर्शन वीतराग के भी होता है और सराग के भी होता है। चार गुणस्थान 11, 12, 13, 14वाँ वीतराग के होता है। इनमें भी सम्यग्-दर्शन है। यह क्षायिक सम्यक्त्व है, जो विशिष्ट होता है।
यहाँ सराग सम्यग् दर्शन की चर्चा की गई है। रागयुक्‍त सम्यग् दर्शन दसवें गुणस्थान तक होता है। 11वें गुणस्थान में राग तो होता है, पर वह उपशांत होता है। सराग सम्यक्-दर्शन के दस प्रकारों में पहला हैनिसर्गरूपी-नैसर्गिक। उपदेश के बिना जो सम्यक्-दर्शन होता है। जैसे किसी को जाति-स्मृति ज्ञान हो गया, उस कारण से सम्यक्-दर्शन हो गया।
उपदेश रूपी-उपदेश के निमित्त से होने वाला सम्यग्-दर्शन। तीसरा प्रकार हैआज्ञा रूपी वीतराग द्वारा प्रतिपादित सिद्धांत से उत्पन्‍न सम्यग्-दर्शन। चौथा हैसूत्र रूपी। सूत्र-ग्रंथों के अध्ययन से उत्पन्‍न सम्यग्-दर्शन। पाँचवाँ है, बीज रूपी-सत्य के एक अंश के सहारे अनेक अंशों में फैलने वाला सम्यग् दर्शन। छठा हैअभिगम ग्रंथी। विशाल ज्ञान राशि के अज्ञय को समझने पर प्राप्त होने वाला सम्यग् दर्शन।  सातवाँ हैविस्तार रूची। आठवाँ हैक्रिया रूची। क्रिया से होने वाला सम्यग्-दर्शन। नौवाँ-संक्षेप रूची। मिथ्या-आग्रह के अभाव में स्वल्प ज्ञान से होने वाला सम्यग्- दर्शन। दसवाँ हैधर्म रूची। धर्म-विषयक सम्यग्-दर्शन। सम्यक्त्व के बिना सम्यग्-चारित्र हो नहीं सकता। जहाँ सम्यग् चारित्र है, वहाँ सम्यग्-दर्शन होगा ही होगा। यह अविनाभावी संबंध है, सम्यग् चारित्र के बिना सम्यग्-दर्शन हो सकता है। सम्यक्त्वविहीन चारित्र नहीं हो सकता पर चारिविहीन सम्यग् ज्ञान के बिना सम्यग् चारित्र नहीं हो सकता। सम्यग् चारित्र के बिना कर्मों से छुटकारा नहीं और कर्मों से छुटकारे के बिना मोक्ष नहीं। निर्वाण की प्राप्ति नहीं हो सकती। इस संदर्भ में सम्यग्-दर्शन भी एक महत्त्वपूर्ण चीज हो जाती है।
सम्यक्त्व के साथ चारित्र भी हो। धर्म के प्रति आस्था मजबूत हो। कठिनाई में भी आस्था न डोले वो विशेष बात है। श्रावक है, उसकी देव, गुरु, धर्म में आस्था मजबूत हो। अर्हनक श्रावक के प्रसंग से यह समझाया कि धर्म के प्रति श्रद्धा अटूट हो, द‍ृढ़धर्मी आस्था हो। नव तत्त्व में द‍ृढ़ आस्था हो। धर्म को नहीं छोड़ने से तो शायद अभी एक बार ही डूबूँगा पर धर्म को छोड़ दूँगा तो भव-भव में डूबने की मेरी स्थिति बन सकती है। साधु हो या श्रावक ऐसी द‍ृढ़ आस्था हो जाए कि पानी में तो डूबेंगे, पर धर्म को नहीं छोड़ेंगे।
सम्यक्त्व तो है, पर चारित्र नहीं है, तो मानो आँखें तो हैं, पाँव नहीं हैं। सम्यक्त्व अंधे व्यक्‍ति के समान है। चारित्र-लंगड़े व्यक्‍ति की तरह है। दोनों एक-दूसरे के पूरक बन जाएँ यह एक घटना से समझाया। इससे संसार रूपी दावानल को पार किया जा सकता है। सम्यक्त्व और चारित्र दोनों का योग हो जाना बड़ी बात है।
असम्यक्त्वी अभवी जीव भले अनंती बार ऐसा चारित्र पाल लो, पर मोक्ष नहीं होगा। सम्यक्त्व युक्‍त चारित्र होता है, फिर सहन करो, साधना करो, निर्जरा करो तो बहुत लाभ हो सकता है। मोक्ष के हम निकट बन सकते हैं। हम सम्यग्-दर्शन से यह प्रेरणा लें कि हमारा सम्यक्त्व निर्मल रहे, पुष्ट रहे, क्षायिक सम्यक्त्ववान हम बनें। ऐसी हमारी कामना रह यह कल्याणकारी बात है।
अणुव्रत उद्बोधन सप्ताहपर्यावरण दिवस

पूज्यप्रवर ने फरमाया कि हमारी दुनिया में अनेक द्रव्य-पदार्थ हैं। आदमी पदार्थों का उपयोग भी करता है। इस संदर्भ में आदमी पदार्थों पर अवलंबित रहता है। अणुव्रत की आत्मा संक्षम है। संंयम है, तो अणुव्रत है। संयम है, तो आदमी चेतना की शुद्धि कर सकता है। पदार्थों के उपयोग में संयम का प्रयास हमारा रहे। जल का भी संयम रहे।
हम अपने असंयम के कारण से पर्यावरण को अशुद्धता प्राप्त हो, उस कार्य से बचने का प्रयास करें। अणुव्रत के जो तत्त्व हैं, वे बड़े उपयोगी हैं। आत्मा के कल्याण के लिए एवं सामाजिक स्वस्थता के लिए अणुव्रत महत्त्वपूर्ण है। पूज्यप्रवर ने तपस्या के प्रत्याख्यान करवाए। मनोहरी देवी बाफना ने 32 की तपस्या के प्रत्याख्यान लिए। विचार के साथ आचार हो।
मुख्य नियोजिका जी ने ज्ञान के आचारों को विस्तार से समझाया। ज्ञान ग्रहण करने के लिए विनय भाव रखना चाहिए। ज्ञान और ज्ञानी के प्रति बहुमान का भाव हो। सम्मान करने वाला कुछ प्राप्त कर सकता है। अणुव्रत न्यास के मुख्य न्यासी के0सी0 जैन, उत्तम सामसुखा, अणुविभा अध्यक्ष संचय जैन, व्यवस्था समिति से प्रकाश सुतरिया ने अपनी भावना अभिव्यक्‍त की। राजस्थान विधानसभाध्यक्ष सी0पी0 जोशी पूज्यप्रवर के दर्शनार्थ उपस्थित हुए। सी0पी0 जोशी ने अपनी भावना-विचार रखते हुए कहा कि सद्भावना, नैतिकता और नशामुक्‍ति के सूत्र संसदीय प्रणाली में आएँ तो निश्‍चित तौर पर समाज और राष्ट्र आगे बढ़ेगा। संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।