निज पर अनुशासन करना दूसरों पर अनुशासन करने की अर्हता : आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

निज पर अनुशासन करना दूसरों पर अनुशासन करने की अर्हता : आचार्यश्री महाश्रमण

भीलवाड़ा, 1 अक्टूबर, 2021
अणुव्रत अनुशास्ता आचार्यश्री महाश्रमण जी ने अणुव्रत उद्बोधन सप्ताह के छठे दिन अनुशासन दिवस पर पावन पाथेय प्रदान करते हुए फरमाया कि एक प्रश्‍न उपस्थित किया जा रहा है कि आदमी सुखी कैसे रह सकता है। इस लोक में भी सुखी और परलोक में भी सुखी। दोनों लोकों में कैसे सुखी रहा जा सकता है? इस प्रश्‍न का उत्तर मुझे जैन आगम उत्तराध्ययन में प्राप्त होता है कि वहाँ कहा गया है कि अपने आपका दमन करना चाहिए, अपने आप पर अनुशासन करना चाहिए। अपने आप पर अनुशासन करना कठिन कार्य होता है। दूसरों पर तो अनुशासन करना तो मानो कुछ आसान हो सकता है, बढ़िया लगे, प्रिय लगे। प्रिय लगना एक बात है, श्रेयस्कर होना अलग बात है। प्रेय और श्रेय दो शब्द हैं। मेरे लिए प्रिय क्या है और श्रेयस्कर क्या है, अलग बात है। आदमी को प्रिय क्या है, इसको कम महत्त्व देना चाहिए, हितकर क्या है, इसको ज्यादा महत्त्व देना चाहिए। दूसरों पर अनुशासन करना तो प्रिय लगे, पर दूसरों पर अनुशासन करने की अर्हता है या नहीं। परम पूज्य आचार्य तुलसी ने यह घोष लगवाया थानिज पर शासन, फिर अनुशासन। इस घोष में हम एक चिंतन कर सकते हैं कि फिर अनुशासन। दूसरों पर अनुशासन बाद में करो, पहले स्वयं पर अनुशासन करो। निज पर अनुशासन करना दूसरों पर अनुशासन करने की अर्हता हो सकती है। अणुव्रत की परिभाषा है कि स्वयं पर अनुशासन करें। अनुशासन एक ऐसा तत्त्व है, जो विद्यार्थी हो या नागरिक सभी के लिए आवश्यक है। भारत एक लोकतंत्र प्रणाली से शासित होने वाला देश है। लोकतंत्र हो राजतंत्र, दोनों का एक ही लक्ष्य है कि प्रजा सुखी रहे, प्रजा में व्यवस्था अच्छी रहे। लोकतंत्र प्रणाली अच्छी है, कारण वहाँ धर्म-निरपेक्षता की बात है। लोकतंत्र में भी अनुशासन रहना चाहिए। कर्तव्य और अनुशासन के बिना लोकतंत्र का देवता मृत्यु और विनाश को प्राप्त हो जाएगा। असली आजादी है, स्वयं पर अनुशासन कर लो। नशे और बेईमानी से मुक्‍ति पा लो। अणुव्रत एक सीमा तक असली आजादी दिलाने वाला एक आंदोलन है। आचार्य तुलसी और आचार्य महाप्रज्ञ जी ने जो अहिंसक चेतना, नैतिकता को अपनाने की बात बताई इनमें दुर्गतियों से अपनी आजादी और मुक्‍ति प्राप्त हो सकती है।
अनुशासन में रहेंगे तो स्वतंत्रता भी काम की हो सकती है। कोरी स्वतंत्रता किस काम की। यह एक प्रसंग से समझाया कि आदमी चेला नहीं गुरु बनना चाहता है। वह किसी का आदेश का पालन नहीं करना चाहता। दूसरे पर अनुशासन तो कर सकता है, पर दूसरे के अनुशासन में नहीं रहना चाहता।
जो अच्छा शिष्य नहीं होता है, वो अच्छा गुरु भी बन पाना मुश्किल है। आचार्य तुलसी और आचार्य महाप्रज्ञ जी कितने वर्षों तक पहले अपने गुरु के अनुशासन में रहे थे, बाद में गुरु बने थे। बिना अर्हता गुरु बनना अच्छा नहीं। निज पर शासन, आत्मानुशासन, पहले स्वयं पर अनुशासन करना सीख लें, फिर कभी मौका मिले दूसरों पर अनुशासन करने का तो वो ज्यादा अच्छा हो सकता है।
आज अणुव्रत अनुशासन दिवस है, हमें इससे प्रेरणा लेनी चाहिए। निज पर शासन फिर अनुशासन को अपनाएँ।
आज अर्जुन मेघवाल आए हैं। अणुव्रत जैसे प्रोग्राम में अर्जुन मेघवाल की उपस्थिति बहुत उचित है। बहुत संगत है, जो अणुव्रत से जुड़े हुए हैं। अणुव्रत से परिचित-अणुव्रत संसदीय मंच की बात करने वाले हैं। भारत की राजनीति में केंद्रीय मंत्री हैं। आपके मुँह से अणुव्रत की बात निकली है, वह बहुत महत्त्वपूर्ण है। आप अणुव्रत के परिवार के व्यक्‍ति हैं। संतों के द्वार खुले हैं, तो अणुव्रत के भी द्वार खुले हैं, कोई आओ और अपनाओ। अर्जुन मेघवाल भारतीय राजनीति से जुड़े हैं, तो खूब अपने नैतिक मूल्य और अणुव्रत की बात को जितना राजनीति और जनता में फैला सकें, वो भी प्रयास करते रहें। खूब अच्छी भावना आध्यात्मिकता, नैतिकता का भाव बना रहे। साध्वीप्रमुखाश्री कनकप्रभा जी ने कहा कि भारत एक धर्मप्रधान देश है। इसमें रहने वाले लोग किसी न किसी धर्म में विश्‍वास रखते हैं। धर्म के नाम और आधार अलग-अलग हो सकते हैं, पर लक्ष्य एक ही है कि मनुष्य का जीवन अच्छा रहे। अणुव्रत की बात है कि मनुष्य मनुष्य बनें। जब तक जीवन में संयम नहीं होगा, मनुष्य जन्म सार्थक नहीं होगा। भौतिकता से जीवन सार्थक नहीं बनता है। मुख्य नियोजिका जी ने कहा कि अणुव्रत का उद्देश्य है, चारित्र संपन्‍न व्यक्‍ति का निर्माण करना। प्रश्‍न होता है कि ज्ञान बड़ा या आचार। गहराई से देखें तो दोनों ही बड़े हैं। पर वास्तव में आचार बड़ा है। जो व्यक्‍ति आचार संपन्‍न होता है, उसका महत्त्व अधिक होता है।  कार्यक्रम का संचालन करते हुए मुनि दिनेश कुमार जी ने बताया कि अणुव्रत सोए हुए संसार को जगाना चाहता है। तेरापंथ में जहाँ तेरापंथ के राम विराजते हैं, वहीं अयोध्या है। 
पूज्यप्रवर की सन्‍निधि में अभातेयुप द्वारा अलंकरणों की घोषणा
अभातेयुप के राष्ट्रीय अध्यक्ष संदीप कोठारी ने वर्ष-2021 के पुरस्कारों की घोषणा करते हुए कहा कि अभातेयुप विशेष युवकों और चयनित प्रतिभाओं को समय-समय पर उनकी योग्यता के आधार पर पुरस्कृत करती आ रही है। इस वर्ष का ‘युवा गौरव’ अलंकरण बी0सी0 जैन भालावत, लाछूड़ा-मुंबई को प्रदान किया जा रहा है। ‘आचार्य महाप्रज्ञ प्रतिभा पुरस्कार’ वर्ष-2021 जब्बर चिंडालिया, सरदारशहर-जयपुर को प्रदत्त किया जा रहा है। ‘आचार्य महाश्रमण युवा व्यक्‍तित्व पुरस्कार’ विमल रूणवाल, जयसिंहपुर को प्रदान किया जा रहा है। सभी को पुरस्कार प्रदत्त किए गए। परम पावन ने प्रेरणा पाथेय प्रदान करते हुए फरमाया कि आदमी को गरिमापूर्ण बनाने वाले बहुत तत्त्व हैं, उनमें एक तत्त्व हैसेवा। जो आदमी अपने जीवन में सेवा की सीढ़ियों पर चढ़ता है, वह उच्चता को प्राप्त होता है। ज्यों-ज्यों वह सोपानों पर आरोहण करता है, त्यों-त्यों उसकी ऊँचाई बढ़ जाती है। जैसे जैन तत्त्वज्ञान में गुणस्थान की स्थिति है। अभातेयुप ने अपने सेवा, संस्कार, संगठनये त्रिआयामी प्रोग्राम हैं। इस परिषद के माध्यम से कितने व्यक्‍तियों को जीवन में आगे बढ़ने का विकास, करने का, कुछ बनने का भी मौका मिल रहा होगा। कितने कार्यकर्ता इस संस्था से निवृत्त होकर समाज की अन्य संस्थाओं से जुड़े होते हैं। आज यह पुरस्कार सम्मान का उपक्रम अभातेयुप की ओर से रखा गया है। सामायिक स्तर पर इन चीजों का भी महत्त्व भी होता है और इनके माध्यम से प्रोत्साहन-प्रेरणा भी प्राप्त हो सकती है। बी0सी0 भालावत पहले इसके अध्यक्ष रहे हैं। उनको युवा गौरव का सम्मान दिया गया है, बहुत बड़ी बात है। ये अपने जीवन में खूब आध्यात्मिक-धार्मिकता में अपना संयम, अणुव्रत के सिद्धांतों आदि में अपना जीवन पुष्ट बनाएँ रखते हुए योगदान देने का
प्रयास करें। सम्मान स्वयं के लिए भी एक प्रेरणा का निमित्त और दूसरों के लिए भी प्रेरणा का निमित्त बन सकता है। जब्बर चिंडालिया को आचार्य महाप्रज्ञ प्रतिभा पुरस्कार दिया गया है। कई वर्षों से संपर्क में रहता है। इसकी भी प्रतिभा का अच्छा उपयोग होता रहे। विमल रूणवाल को जो युवा व्यक्‍तित्व पुरस्कार दिया गया है। अपने समाज में धार्मिक-आध्यात्मिक सेवा व स्वयं की साधना करता रहे। सेवा में शक्‍ति का उपयोग होता रहे। साध्वीप्रमुखाश्री कनकप्रभा जी ने आशीर्वचन देते हुए कहायुवक शक्‍ति का प्रतीक होता है। वह अपने जीवन में कुछ नया करना चाहता है। पूरी दुनिया के युवकों का आकलन किया जाए तो भारत एक ऐसा देश है, जहाँ सबसे ज्यादा युवा हैं। भारतीय प्रतिमाओं का लोहा मानती है दुनिया। तेरापंथ समाज के युवकों में यह अपेक्षा होनी चाहिए कि वे दूसरों की सेवा में विकास कर रहे हैं। युवक अनीति से लड़ना सीखें, दुर्गुणों से दूर रहें। अपनी शक्‍ति का सकारात्मक उपयोग करते हुए संघ की सेवा करते रहें। संस्था का गौरव बढ़ाते रहें। अभातेयुप द्वितीय अमित नाहटा ने युवा गौरव के प्रशस्ति पत्र का वाचन किया। आचार्य महाप्रज्ञ प्रतिभा पुरस्कार के प्रशस्ति-पत्र का वाचन महेश बाफना ने एवं आचार्य महाश्रमण युवा व्यक्‍तित्व पुरस्कार के प्रशस्ति पत्र का वाचन दिनेश पोखरना ने किया। बी0सी0 भालावत, जब्बर चिंडालिया एवं विमल रूणवाल ने अपनी भावना अभिव्यक्‍त की। संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।